नदियों के जो कहीं शुतियों में नाम बागये हैं वे परस्पर विरुद्ध होने के कारण ताश प्रमाणी भूत नहीं होते इस में इस बात लो या पूर्ण रूप से प्रमाग प्रमित कर चुके कि पार्य लोगों के नियास का मान जाम से लेकर यमुना के किनारे तक के दश हैं तो इससे वहां को प्राचीन निवासियों को यदि इस परम आया कहें तो क्या हानि है। ___ अब इस बात का झगड़ा रहा कि ये कौन वर्ग हैं ? तो हम साधारण । रूप से कहते हैं कि ये क्षत्री हैं, क्षती ले खत्री कोने हुए इस में बड़ा विवाद है बहुत लोगों का तो यह सिद्धान्त है कि पंजाब को लोग क्ष उच्चारण नहीं कर सो इससे ये क्षत्रो से खुदी कहलाये, कोई कहते हैं कि जब परशुराम जी ने निवत्र किया तब पंजाब देश से कई दाल का खही काहकर बचा लिये गये थे वे बालास वेश्य और शूद्रों के घरों में चले थे और अब उन्हीं से खत्री अरोडे माटिये इतबादि अनेक उपजाति बन गई और उनको आचरण भी अपने २ पालकों के अनुसार अलग २ होगये, तीसरे कहने हैं कि कली और खत्री से भेद राजा चन्द्रगुप्त के समय से हुआ क्योंकि चन्द्रगुप्त शूद्री को पेट से था और जब उसने चाणक्य नाह्मण के बल से नन्दों को मारा और भारतव- का राजा हुआ तो सब क्षत्रियों से उसने रोटी और बेटी का व्यवहार खोलना चाहा तब से बहुत से क्षत्री अन्नग होवान हिमालय की नीची श्रेणी में जा छिपे और जब उसने क्षलिवों का संहार करना आरा किया तब से ये सब क्षत्री रसलियों के नाम से बनिये बन कार बच गये, कोई कहते हैं कि ये लोग हैं तो क्षत्री पर वाल जुल के प्रभाव से वैश्य होगये हैं क्योंकि क न जुग के प्रकरण में लिखा है कि " वैश्य वृतातु राजानः”। कोई ऐसा भी निश्चय करते हैं कि किसो समय सारे भारतवर्ष में जैनों का मत फैल गया था. तब सब वर्ग के लोग न होगये थे विशेष कार को वैश्य और क्षत्री. उनमें से जो क्षत्री आबले पहाड़ पर ब्राह्मणों ने संस्कार देकर बनाये व तो क्षती हुए और उन लोगों से सैबाड़ी वर्ष पीछे जो हनी जैन धर्म छोड़ कर हिंद हुए वे रतनी वा हाये चौर मात्रियों की पंक्ति मे न मिले, गुरु गोविन्द सिंह ने अपने अन्य नाटका के दूसरे तीसरे चौध पांचवे अनाव में लिखा है कि “ सब खत्री सात सर्वप्रवंशी हैं, रामजी के दो पुत्र लव और सुशत सह देश के राजा की दान्या से विवाह किया और उसी प्रान्त में दोनों ने दो नगर बसाये कुश ने कसूर लव ने ज्ञाहौर उन दोनों के वंश में कई सौ वर्ष नोग राज्य करते चले
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