पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/९५

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[ ६] लालन पालनं तेषां पोषणां तस्त्रिया सुत । वालानां क्षत्रवश्यानामकरोत् स्नेह भावत: ॥ ३६ ॥ एवमेव ततो रंग भूम्या: काश्चित् स्त्रियो हृताः । टुष्ट : काश्चि हिड्नश्च दयालु भिकपाहताः ॥ ३० ॥ लक्ष्मी विन्तास संचन विशा ते बाल का यदा । ब्रतबंधाहतां प्राप्ता: समकायु,पना यनं ॥ ३८ ॥ स्वधर्माचरणे चैवं विशा ते सुनियोजिताः । एव मे वापरे वालाः खियो येन सुरक्षिता: ।। ३६ ।। पोषिताः खीयदत्तेन भन्ने नेब तथैव ते । मतवा तमेव चाचारं वर्षतु स्तेन सदा । ४० ।। इसे लक्ष्मी विलासेन रक्षिताः क्षत्रवंशजाः । शुद्धाः सदाचारयुक्ता बभूवुर्भाग्यशालिनः ।। ४१ ॥ वेषां कलियुगेपो मे चत्वारो वंशजा स्मृताः । अग्निः सोमश्च सूर्यश्च नाग एते चतुर्विधाः ॥ ४२ ॥ अद्यापि सूमो वर्तते चतुमन्ता नवईवाः । दानशूरा; सदाचारा भाववन्तः सुविक्रमाः ॥ ४३ ।। अर्थ-जब परशुराम जी दिग्विजय वारने निकले तब सब पृथ्वी आनन्द पूर्ण होगई क्योंकि दुष्टों के भार से पृथ्वी व्याकुन्त हुई थी और इन्होंने दुष्टों का संहार किया । सब पृथ्वी पर पुमते और बाहुबल से नाय करते हुए पंच- नद देशों में गए और वहां को राजा से बड़ा संग्राम किया यद्यपि भगवान् अकेले थे तथापि वहां के राजा की सब सेना सार डाली-इतबादि । ___ उन हत बोरों को स्त्रियां और बात कों को सही विलास नामक वैश्य ले गया और धर्मपूर्वक रक्षण किया और उनके पुत्रों का लालन पालन और यज्ञोपीवतादि संस्कार किया इसी भांति उन मृत दीरों को रिलयां और बा- लक ब्राह्मण वा शुद्रादि जिन वगों के घर गए उन को ऐसेही आचरण हुए