पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१०३

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( ४८ ) रोक कौन सकता.था ? वहाँ के जमींदार-महाराजा दरभंगा या चौधरी बखति- चारपुर जैसे शानियल और हिम्मतवर भी न थे कि कोई खास बाधा . डालते। . सभा के समय खास. जिले के उस इलाके के कई कांग्रेस कर्मी और- भी आगये थे और उन्हीं में थे चैनपुर के एक युवक जमींदार साहब भी, वह थे तो मेरे परिचित । उनके चचा. वगैरह से मेरी पुरानी मुलाकात थी। सगर मैं तो चिंहुका कि यह क्या ? किसानों को सभा में बड़े-बड़े जमींदारों के पदार्पण का क्या अर्थ है ? लोगों ने कहा कि ये तो कांग्रेसी हैं । कांग्रेस में तो सबों की गुजाइश हुई । उसी नाते यहाँ भी पागये हैं । मैंने वात तो सुन लो । मगर मेरे दिल, दिमाग में किसान-सभा का कांग्रेस से यह नाता कुछ समा न सका । मेरी आँखों के सामने उस समय भारतीय भावी स्वराज्य की एक झलक सी आगई । मुझे मालूम पड़ा कि इन जमींदारों का भी तो आखिर वही स्वराज्य होगा । इनके लिये वह कोई और तो होगा नहीं। फिर वही स्वराज्य किसानों का भी कैसे होगा यह अजीब बात है। बाघ और बकरी का एक ही स्वराज्य हो तो यह नायाब बात और अघटित घटना होगी । लेकिन मेरे भीतर के इस उथल-पुथल और 'महाभारत को वे लोग क्या समझे ? फिर मैं अपने काम में लग गया और यह बात तो भूली गया । उस युवक 'जमींदार के पास एक बहुत अच्छी और नई मोटर भी थी जिस पर चढ़ के वे आये थे। सभा का काम पूरा होने पर जब हमने दो घंटा दिन रहते ही रवाना होने की बात कही तो वहाँ के कांग्रेसी दोस्त पहले तो अब चलते हैं, तब चलते हैं करते रहे। पीछे उनने कहा कि अभी काफी समय है । जरा ठहर के चलेंगे। असल में वे लोग पैदल नौ मील चलने को तैयार न थे। ठीक ही था। मेरी और उनकी किसान-सभा एक तो थी, नहीं । उन्हें तो स्वराज्य की फिक्र ज्यादा थी-गोल-मोल स्वराज्य की, जिसमें किसानों का स्थान क्या होगा इस बात का अब तक पता ही नहीं। उसी स्वराज्य की लड़ाई में किसानों को साथ लेने के ही लिवे वे लोग पाये थे । साथ ही, .