एवं सामाजिक उत्पीड़न ही इस विद्रोह के असली कारण रहे हैं और धार्मिक रंग अगर उन पर चढ़ा है तो कार्य-कारणवश ही, प्रसंगवंश ही। १९२० और १९२१ वाले विद्रोह को तो सबों ने, यहाँ तक कि महात्मा गांधी ने भी, धार्मिक ही माना है। मगर उसी के सम्बन्ध में मालाबार के ब्राह्मणों के पत्र 'योगक्षेमम्' ने १९२२ की ६ जनवरी के अग्रलेख में लिखा था कि "केवल धनियों तथा जमींदारों को ही ये विद्रोही-सताते हैं, न कि गरीब किसानों को––"
"only the rich and the landlords are suffering in the hands of the rebels, not the poor peasants."
अगर धार्मिक बात होती तो यह धनी-गरीब का भेद क्यों होता? इसी तरह ता॰ ५|२|१९२१ में दक्षिण मालाबार के कलक्टर ने जो १४४ धारा की नोटिस जारी की थी उसके कारणों में लिखा गया था कि "भोले-भाले मोपलों को न सिर्फ सरकार के विरुद्ध, वरन् हिन्दू जन्मियों (जमींदारों––मालाबार में जमींदार को 'जन्मी' कहते हैं) के भी विरुद्ध उभाड़ा जायगा"––
"The feeling of the ignorant Moplahs will be inflamed against not only the Government but also against the Hindu Jepmies (landlords) of the district."
इससे भी स्पष्ट है कि विद्रोह का कारण आर्थिक था। नहीं तो सिर्फ जमींदारों तथा सरकार के विरुद्ध यह बात क्यों होती?
बात असल यह है कि मालाबार के जमींदार ब्राह्मण ही हैं। उत्तरी मालाबार में शायद ही दो एक मोपले भी जमींदार हैं। और ये मोपले-गरीब किसान हैं। इनमें खाते-पीते लोग शायद ही हैं। इन किसानों को जमीन पर पहले कोई हक था ही नहीं और झगड़े की असली बुनियाद यही थी, यही है। यह पुरानी चीज है और शोषक जमींदारों के हिन्दू (ब्राह्मण) होने के नाते ही इन संघर्षों पर धार्मिक रंग चढ़ता है। नहीं, नहीं,