पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१३७

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१४ भागलपुर जिले के उत्तरी हिस्से में कोसी नदी और जमींदारों ने कुछ ऐसी गुटबन्दी की है कि किसान लोग पनाह माँगते हैं। दोनों ही निर्दय और किसानों की ओर से ऐसे लापर्वाह हैं कि कुछ कहिये मत । कोसी को तो खैर न समझ है और न चेतनता । इसलिये वह जो भी अनर्थ करे समझ में,श्रा सकता है। वह तो अन्धी ठहरी। मगर इन्सान और सभ्य कहे. जाने वाले ये जमींदार ! इन्हें क्या कहा जाय ? जब कोसी से भी बाजी मार ले जाते हुए ये भलेमानस देखे जाते हैं तो आश्चर्य होता है। मालूम होता है, ये लोग नादिरशाह हैं। इन्हें मनुष्यता से कोई नाता ही नहीं। इनके लिये कोई पाईन कानून भी नहीं हैं ! इन निराले जीवों को कुदरत ने क्यों पैदा किया यह पता ही नहीं चलता ! किसान-सभा के ही आन्दोलन के सिलसिले में मैं कई बार उस इलाके में गया जिसे कोसी ने उजाड़ दिया है। उसकी धारा का कोई ठिकाना नहीं है। रहती है रहती है, एकाएक पलट जाती है और आबाद भू-भाग. को अपने पेट में बीसियों साल तक लगातार डाल लेती है । यह ठीक है कि जिस जमीन को छोड़ देती है वह पैदावार तो खूब ही हो जाती है । मगर मौना, खरही, वगैरह का ऐसा घोर जंगल हो जाता है कि कुछ पूछिये मत | जंगली सूअर, हिरण और दूसरे जानवरों के अड्डे उस जंगल में बन जाते हैं । फिर तो वे लोग दूर तक धावा मारते हैं। किसानों की फसलें वचने पाती ही नहीं हैं। वे लोग पनाह माँगते फिरते हैं। यह भी नहीं कि वह जंगल कट जाय । किसानों की क्या ताकत कि उसे काट सकें। हजारों, लाखों बीघे में लगातार जंगल ही जङ्गल होता है। यदि काटिये भी