पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१४

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दी गई जमीन बलात् छीनी थी। १८४३ में भी दो संघर्ष हुऐ––एक गाँव के मुखिया के विरुद्ध और दूसरा ब्राह्मण जमींदार के खिलाफ। १८५१ में उत्तर मालाबार में भी एक जमींदार का वंश ही खत्म कर दिया गया। १८८० की बात कही चुके हैं। १८९८ में भी उसी तरह एक जमींदार मारा गया। १९१९ में मनकट्टा पहत्री पुरम् में एक ब्राह्मण जमींदार और उसके आदमियों को चेकाजी नामक मोपला किसान के दल ने खत्म कर दिया और लूट-पाट की। क्योंकि उसने चेकाजी के विरुद्ध बाकी लगान की डिग्री से सन्तोष न करके उसके पुत्र की शादी भी न होने दी।

१९२० के अक्तूबर में कालीकट में जो काश्तकारी कानून के सुधार का आन्दोलन शुरू हुआ, १९२१ वाली बगावत इसी का परिणाम थी। जमींदार मनमाने ढंग से लगान बढ़ाते और बेतहाशा बेदखलियाँ किया करते थे। इसीलिये सैकड़ों सभाये हुईं। स्थान-स्थान पर किसान-सभायें बनीं, कालीकट के राजा की जमींदारी में एक "टेनेन्ट रिलीफ असोसियेशन" कायम हुआ और मंजेरी की बड़ी कांफ्रेंस में किसानों की माँगों का जोरदार समर्थन हुआ। इसी के साथ खिलाफत आन्दोलन भी आ मिला। मगर असलियत तो दूसरी ही थी। इस तरह देखते हैं कि आज से सैकड़ों साल पूर्व विशुद्ध किसान-आन्दोलन किसान हकों के लिये चला और १९२० में आकर उसने कहीं-कहीं संगठन का जामा पहनने की भी कोशिश की।



अच्छा, अब मालाबार के दक्षिणी किसान-आन्दोलन से हटकर उत्तर में बम्बई प्रेसिडेंसी के महाराष्ट्र, खानदेश और गुजरात को देखें। वहाँ भी १८४५ और १८७५ के मध्य किसानों में रह-रह के उभाड़ होते रहे। कोली, कुर्मी, भील, ब्राह्मण और दूसरी जाति के लोग––सभी––इस विद्रोह में शरीक थे। १८४५ में भालों के नेता रघुभंगरिन के दल ने साहूकारों को लूटा-पाटा। पूना और थाना जिलों के कोलियों ने भी समय-समय पर ऐसी लूट-पाट और मार-काट की। इस सम्बन्ध में १८५२ में सर जी॰ विन्गेट (Sir G. Wingate) बम्बई सरकार को लिखा