(६७ ) के भी जुल्म कम नहीं है । पिछड़े हुए इलाके में जुन्म सामावाद ज्यादा होते ही हैं । मगर हमें यह जानकर ताज्जुब हुया कि कहीं भी हमारी खर्च के लिये काफी पैसे वसूल हो गये थे। असल में वही हमें पता चला कि सभी जगह किसान जाँच के बाद शर्मा जी को पैसे देते रहे हैं। कोई जाँच केन्द्र नागा नहीं गया है। बाहरी दुनियाँ को शायद विश्वास न हो और ताज्जुब हो कि किसान- सभा की प्रारम्भिक हालत में ही यह बात कैसे हो सकी। नगर में बिहार प्रान्तीय किसान-सभा के बारे में पक्की पक्की बात कर सकता हैं कि मुश्किल से सी दो सौ रुपये श्राज तक हमें हमारे शुभचिन्तकों से मिले होंगे, सो भी दस-बीस के ही रूप में, न कि एक बार । उपादे से मादा पचास रुपये एक बार एक ने दिये, सो भो युनाइटेट पार्टी के कोने के ही समय सन् १९३३ ई. के शुरू में ही । लेकिन आज तक एमागे ममा ने लाखों रुपये जरूर दी खर्च होंगे । केवल मेरो सफर में दी, जो महीने में पनीस दिन तो नरूर ही होती रहती है और कमो कभी ज्यादे दिन भी, माल में कम से कम पाँच छे हजार रुपये खर्च होई जाते होंगे। यह सिलसिला प्रायः दस साल से जारी है। होता है यही कि जी जिसे मुझे बुलाना दोता है वही से मेरे सफर खर्च का प्रबन्ध जरूरी है। अन्दाज से उनने पैसे या तो पहले ही भेज दिये जाते हैं या वहीं माने पर मिल जाते हैं। पर्दाफे लोग पूट लेते हैं कि पर्व कितना चाहिये । मे मो जितने से गाम बने आना बता देता है। कमी दो चार रपे जादा भी मिल जाते हैं ये लोग खुद देते हैं रिना पूछे दी। दूसरे प्रान्तो में दीगा कारने पर मोही शेता है। फलतः चा खोटो और पानो रियो" याना मिदान मेरे माप बलता न तो ज्यादा बनता है और न काम करता है। दिनमा भी है तो माल में दस बीस ही, नो में एक दो दिन की है, "धासो बोन कुत्ता सानोमानी शादी का पर्व मिसानो मोदी करना था। इसीनियर रहते हैं, जमोदारों और उनके दोनेको मान .
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