पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १०२ ) तैयारी थी। एक ही मोटर थी। उसो.पर जितने लोग लद सके लद के रवाना हो गये। रेवती, सहतवार, बाँसडीह और मनियार इन चार स्थानों में समायें करके अगले दिन सुबह के पहले ही प्रायः दो ही बजे वेजयरा रोड स्टेशन पहुँच के वस्ती जाने की ट्रेन पकड़नी थी । जिले के पूर्वी सिरे के करीब पहुँच के पहली मीटिंग थी और उत्तर पच्छिमी किनारे पर पहुँच के रेलगाड़ी पकड़नी थी। सड़कें तो सब की सब कच्ची ही थीं। केवल शुरू में ही थोड़ी सी पको मिली । बरसात ने उनकी ऐसी फजीती कर डाली थी कि रास्ते भर मोटर उछाल मारती थी। मुझे तो सबसे ज्यादा ताज्जुब उस मोटर की मजबूती पर था जो टूटी नहीं और अन्त तक काम करती ही गई। दोपहर के करीब हम लोग रेवती पहुँचे । एक बाग में मीटिंग का प्रबन्ध था। पाम में ही एक डिप्टी साहब का खेमा था । शायद तनावी या इसी प्रकार का कर्ज वे बाँट रहे थे गरीब किसानों को । मगर' उनने कृपा की और हमारी मीटिंग में बाधा नहीं हुई। हमने अपनी बात किसानों को कह सुनाई और बांसडीह के लिये चल पड़े। रास्ते में ही सहतवार गाँव पड़ा। जाने के समय भी पड़ा था और वहाँ के लोगों ने हमें रोकने का तय कर लिया था । जब लौटे तो मजबूर होना पड़ा । देहात का यह एक अच्छा बाजार है। लोग जमा हो गये। दूसरे गाँवों के भी लोग थे । पेड़ों के बीच एक ऊँची पक्को जगह पर, जो शायद एक मन्दिर की है, हमने उन्हें अपना कर्त्तव्य समझाया और किसानों के लिये क्या करना जरूरी है यह बताया । फिर फौरन ही बांसडीह का रास्ता लिया। बाँसडीह में बड़ी तैयारी थी । कोठे पर ठहरे । बहुत लोग वहीं जमा हो गये । उनसे बातें होती रहीं। फिर नीचे काफी भीड़ हुई । हमें मजबूरन कोठे पर ही छत के किनारे से उपदेश देना पड़ा ताकि नीचे और ऊपर के सभी लोग अच्छी तरह सुन सकें । दूसरी जगह जाने में देर होती और हमें अभी मनियर जाना था, जो वहाँ से काफी दूर था। इसीलिये कोठे