पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१५८

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'पर से ही उपदेश देने का प्रबन्ध किया गया था। हमने वहाँ का काम भी जल्दी-जल्दी में खत्म किया और चटपट मनियर के लिये रवाना हो गये । असल में सबसे बड़ी और तैयारो वाली सभा मनियर में ही थी। खुशी यही थी कि वह सभा रात में होने को थी । यदि दिन में होती तो हम हर्गिज वहाँ पहुँची न सकते । अन्धेरा तो हो गया पहुँचते ही पहुँचते । -मर्दाना ने रात में उसका प्रबन्ध करके दूरदेशी और जवाबदेही का परिचय जरूर दिया था। वेशक, जैसी आशा थी नहीं वैसी सभा वहाँ हुई । हमने स्थान की तैयारी वगैरह देखी सो तो देखी ही। हमें उस चीज ने आकृष्ट नहीं किया। हाँ, जब देखा कि सैकड़ों किसान-सेवक (वालंटियर) वर्दी पहने और हाथ में लाठी लिये चारों तरफ तैनात थे और भीड़ को कब्जे में रख रहे थे तो हमें बड़ी ही खुशी हुई। मीटिंग का प्रबन्ध, बोलने आदि का तरीका ये सभी बाते सराहनीय थीं। वहाँ पर हम घंटों बोलते रहे और किसानों की समस्यायों को खोल के लोगों के सामने रख दिया । असल में उस दिन की चार मीटिंगों में पहली में हम अच्छी तरह बोल सके थे हालांकि जल्दी में जरूर थे। मगर मनियर में तो निश्चिन्त होके बोलते रहे । लोग भी ऐसे शान्त थे कि गोया हमारी बातें मस्त होके पीते जाते थे । कांग्रेसी मंत्रिमंडल के युग में भी किसानों को तकलीफें पहले जैसे ही रह गई यह देख के लोगों में बहुत ही क्षोभ था । लोग अब असलियत समझने लग गये थे। अब तो बातों से नहीं, किन्तु कामों से मंत्रो लोगों की जांच कर रहे थे और साफ देख रहे थे कि उनकी बातें डपोरशंखी निकलों । इसीलिये मुझसे इसका रहस्य सुनने और समझने में उन्हें मजा पा रहा था। किसान-सभा की जरूरत वे लोग अब समझने लगे थे। खैर, सभा तो खत्म हुई और हम लोग डेरे पर प्राये । मैंने दूध पिया और साथियों ने खाना खाया । इतने में रात के दसम्यारह बज गये। इम चलने की जल्दी में थे। बस्ती जिले का प्रोग्राम बड़ा ही महत्वपूर्ण था। असल में वहाँ की यह यात्रा पहली ही थी। बलिया में तो कई