( १०६ ) लाचार, सोचा गया कि सुबह चलेंगे। मगर नींद कहाँ ? वह भी तो तभी आती है। जब आराम और मौज के सामान मौजूद रहते हैं । अकेली तो आना जानती नहीं। लाचार किसी प्रकार कुछ घंटे काटे। फिर खयाल श्राया कि सारे साज-सामान के साथ चलना है । इसलिये बैलगाड़ी तो जरूर ही चाहिये । उसके लिये दो एक साथी पास के गाँव में गये भी । मगर मेरे साथ तो एक और बला पा लगी। पहले 'दिन की दौड़-धूप और परीशानी के बाद भी रात में नींद हराम रही। इसलिये मेरी आवाज कतई बन्द हो गई । गला ऐसा सँधा कि ताज्जुब होता था। मेरी जिन्दगी में गले की यह हालत पहली ही बार हुई और शायद आखिरी बार भी। जरा भी आवाज निकल न सकती थी। मेरी आवाज बड़ी तेज मानी जाती है। मगर वह एकाएक कहाँ-क्यों चली -गई-यह कौन बताये सिवाय डाक्टरों और वैद्य-हकीमों के ? वुखार भी हो पाया। फिर भी जैसे-तैसे बैलगाड़ी पर बैठ के बेलथरा रोड पहुँचना तो था ही। पहुँच भी गये। उसी समय युक्तप्रान्त के श्री मोहनलाल सक्सेना कांग्रेसी मंत्रिमंडल का दमामा बजाते वेलथरा पहुंचे थे। उनकी सभा थी। लोगों ने बोलने का हठ मुझसे भी किया। हालाँकि सक्सेना चौंकते थे। मगर यहाँ तो आवाज ही बन्द थी। इसलिये बला टली । स्टेशन पर ही बस्ती वालों को अपनी लाचारी का तार देके सन्तोष करना पड़ा । दूसरा चारा था भी नहीं। फिर तय पाया कि बनारस चल के गला ठीक करें। तब दौरा करेंगे। सभी जगह खबर भेज के प्रोग्राम -स्थगित किया गया और हम लोग काशी में बाबू वेनीप्रसाद सिंह के यहाँ पहुँचे। वहीं दो या तीन दिनों में गला ठीक करके फिर दौरा प्रारंभ किया गया।
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