( १०५ ) रही। इसी तरह आगे बढ़ते . और घूम-घुमाव करते जा रहे थे । नतीजा यह हुआ कि हम लोग सड़क से एक तो बहुत दूर हट गये। दूसरे पच्छिम ओर चलते-चलते पूर्व की ओर हो गये । मोटर के चक्कर और घुमाव के करते ही ड्राइवर को भी और हमें भी पता ही न लगा कि किधर से किधर जा रहे हैं । यों ही चलते-चलाते हालत यह हुई कि जोते खेतों से हम गुजरने लगे। यह थी तो हमारी सरासर नादानी । मोटर की सवारी में अन्धेरी रात में ऐसा काम करने की हिम्मत भला कौन करेगा कि रास्ता छोड़ के खेतों से अनजान दिशा में अन्दाज के ही बल चले । मगर "भारत करहिं विचार न काऊ" वाली बात थी। हमें अगले दिन का प्रोग्राम पूरा करना था। और मर्दाना ने पक्का पता सड़क का न लगा के हमें जो यों ही कह दिया कि सड़क ठीक है वह उसी का प्रायश्चित्त हमें किसी प्रकार ठोक समय वेलथरा पहुँचा के करना चाहते थे। इसीलिये उस समय हमें मौत भी भूल गई थी। नहीं तो कुएं वाली घटना के बाद तो खामखाह रुक जाते। इतने में एकाएक एक झोल के किनारे हमारी मोटर जा पहुँची । जोते खेतों ने चलते-चलते हम समझी न सके कि किधर जा रहे हैं। तब तक पानी के किनारे जा पहुँचे। यह भी अन्दाज हुआ कि यह झील लम्बी है । अब हम निराश हो गये और घड़ी देखने लगे। पता चला कि दो से ज्यादा समय हो गया है। अब तक हम इस फिराग में थे कि रेल की सीटी सुनें या ट्रेन की आहट पाये। खयाल था कि स्टेशन निकट है। मगर अब निराश हो गये । जो तकलीफ उस समय हमें हुई कि अाज का प्रोग्राम चौपट हुआ उसे कौन समझ सकता था १ यदि सममने वाले होते तो अब तक किसान कहाँ से कहाँ चले गये होते ! अव सोचा गया कि यहीं रुक जाय । क्योंकि पता ही न था कि किधर जा रहे हैं। आगे पानी भी तो था। सारी रात जगे थे। पहले दिन चार सभात्रों में बोलते बोलते पस्त भी हो चुके थे। सोने का कोई सामान न या। चिन्ता अलग पाए. ले रही थी। इतने में फिर देखा कि तीन से भी ज्यादा बज चुके थे। ।
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