( ११६ ) मुझे आश्चर्य जरूर हुअा कि यहीं पास में वारदौली में किसानों को लड़ाई हुई ऐसा सभी जानते सुनते हैं । फिर भो रानीपरज के लोग आज बिना जमीन के हैं और दूसरों की गुलामी करते हैं। दुबला के नाम से प्रसिद्ध है। उन्हें जमीन दिलाने या उनकी गुलामो मिटाने की लड़ाई लड़ी न जाकर यह समाज-सुधार (social reform) का काम एक निराली बात है। गोया ये लोग जरायम पेशा कौम हैं, जो Criminal Tribes हैं । जैसे जरायम पेशा लोगों को धर्म के नाम पर सुधारने की कोशिश की जाती है और शराब बन्दी का प्रचार होता है ठीक वही हालत यहाँ है। मैंने समझ लिया कि असली काम न करके यह बाहर मरहमपट्टी लोगों की अाँख में धूल झोंकने के ही लिये की जा रही है। जंगल में रहने वाली बहादुर कौम पेट के लिये मुफ्तखोरों और लुटेरों की गुलामी करे और नेता लोग इसके भीतर समाज-सुधार का प्रचार करें ! यह निराली बात निकली। ब्याह-शादी वगैरह के समय बनिये साहुकार या शराब बेचने वाले इन सीधे किसानों को चढ़ाके कर्ज देते दिलाते और शराब 'पिलवाते हैं, और पीछे उसी कर्ज में न सिर्फ इनकी जमीनें ले लेते बल्कि पुश्त दरपुश्त इन्हें गुलाम बना डालते हैं । इस लूट और धोखेबाजी के खिलाफ इनमें बगावत का प्रचार किया जाना चाहता था। इन्हें बताना था कि उस बनावटी कर्ज को माफ कर दे और सुना दे कि अब हम गुलाम किसा के भी नहीं हैं । यही तो इस मर्ज की असली दवा है। मगर नकली नेता लोग दूसरी ही बात करते हैं। असल में इसी बात में उनका भी स्वार्थ है । वह भी या तो सहुकार आदि हैं, या उनके दोस्त और दलाल ! वहाँ से हम अगले दिन सूरत जाना था। रेल पकड़ के सूरत पहुँचे भी और वहाँ शाम को एक मीटिंग भी की। फिर सोधे पंचमहाल जिले के दाहोद शहर के लिये फ्रांटियर मेल से रवाना होके अगले दिन नवेरे रात रहते ही पहुँचे । वहाँ एक तो म्युनिसिपैलिटी की ओर से हमें मान- पत्र मिलना था । दूसरे एक सार्वजनिक सभा में भाषण करना था। बान्धे बड़ौदा और सेन्ट्रल इन्डिया रेलवे का वीं एक बड़ा कारखाना होने से -
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