( १३७ ) दलीलों का जवाब देते हो क्या ? इसलिये यह कहना शुरू किया कि आपके रहने से रिपोर्ट सर्व सम्मत (unanimous) न होगी और उसकी कीमत पूरी पूरी होने के लिये उसका सर्व सम्मत होना जरूरी है। इस पर मैं बोल बैठा कि आपने अभी से यह कैसे मान लिया कि रिपोर्ट ऐसी न होगी और उसमें मेरा मतभेद खामखाह होगा ? मैं तो बहुत दिनों से वकिंग कमिटी का मेम्बर हूँ और उसके सामने बहुत से पेचीदा प्रश्न आते ही रहे हैं। किसानों के भी कितने ही सवाल जब न तब आये हैं। मगर आप लोग क्या एक भी ऐसा मौका बता सकते हैं जब मेरा मतभेद रहा हो ? या जत्र' मैंने अन्त में अलग राय दी हो ? यह दूसरी बात है कि वहस मुत्राहसे होते रहे हैं। तो भी अन्त में फैसला तो हमने एक राय से ही किया है । फिर भी यदि आप लोग अभी से यह माने बैठे हैं कि जांच कमिटी की रिपोर्ट में मेरा रिपोर्ट खामखाह होगा, तो माफ़ कीजिये, मुझे कुछ दूसरी ही बात दीखती है । मैं हैरत में हूँ कि यह क्या बातें सुन रहा हूँ। एक बात और है। मान लीजिये कि मेरा मतभेद बाकी मेम्बरों से होगा ही। तो इससे क्या ? यह तो बराबर होता ही है । क्या सभी कमिटियों की रिपोर्ट एक राय से ही लिखी जाती हैं । शायद निन्नानवे फीसदी तो कभी एक मत नहीं होती है। मुश्किल से नौ में एक रिपोर्ट ऐसी होती होंगी। तो क्या कभी ऐसा भी होता है कि शुरू में ही ऐसे लोग मेम्बर बनाये जाय जिनके विचार एक से ही हों ? उलटे हमने देखा है, हम बराबर देखते हैं कि ऐसी कमिटियों में खासकर अनेक खयाल के लोग ही रखेः जाते हैं । बल्कि उनकी रिपोर्टों की ज्यादा कीमत, ज्यादा अहमियत इसीसे होती है कि अनेक मत के लोग उनमें थे। फिर भी श्राप लोग उल्टी ही वात बोल रहे हैं। आखिर आपकी यह जांच कमिटी कोई निराली चीजः तो है नहीं । फिर मैं यह क्या सुनता हूँ कि रिपोर्ट एक मत न होगी? अब तो किसी के बोलने के लिये और भी गुंजाइश न थी। सभी चुप थे। और लोगों की भवाभंगी से और खासकर राजेन्द्र बाबू के चेहरे ते मुझे साफ साफ झलका कि उन लोगों पर कोई भारी आफत आ गई है।
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