पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/१९३

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( १३६ ) किसानों की यदि कुछ भी भलाई करनी थी तो कुल नौ मेम्बरों में एक का ऐसा होना अनिवार्य था जो किसानों की बाते ठीक ठीक जानता और उनकी सभी समस्याएँ सममता हो। कोई वजह भी न थी कि मैं जाँच कमिटी में न रहूँ। यह हिम्मत भी किसे हो सकती थी कि मुझे रहने से रोके । आखीर चुनाव में जो अगले साल शुरू में ही होने को था, किसान- सभा की सहायता भी तो कांग्रेस के लिये जरूरी थी। इसलिये भी मुझे रखना ही पड़ता। मगर मुझे क्या मालूम कि खुद बा० राजेन्द्र प्रसाद धर्मसंकट में पड़े डूबते उतराते थे। मैं तो समझता था, और दूसरे भी समझते थे, कि मुझे जाँच कमिटी में रहना ही है। दूसरी बात होई न सकती थी। लेकिन जब राजेन्द्र बाबू ने दबी जबान से कहा कि स्वामी जी के रहने पर जमींदार और सरकार दोनों ही कहेंगे कि जाँच कमिटी की रिपोर्ट तो दरअसल किसान-सभा की रिपोर्ट है, न कि कांग्रेस की। कहने के लिये भले ही उसकी हो, तो मुझे ताज्जुब हुआ कि यह क्या बोल रहे है। मगर उनने और भी कह डाला कि हम नहीं चाहते कि किसी को ऐसा कहने का मौका मिले । हम चाहते हैं कि सभी की नजरों में हमारी रिपोर्ट की कीमत और अहमियत हो । अब तो मैं और भी हैरान हुअा और उनसे पूछा कि श्राप क्या दलील दे रहे हैं १. नौ में मैं ही अवेला किसान-सभा का ठहरा । बाकी तो खांटी कांग्रेसी हैं, जमींदार और जमींदारों के दोस्त हैं। फिर यह कैसे होगा कि उनकी कीमत न हो और अकेले मेरे ही करते श्रापकी रिपोर्ट किसान-सभा की बन जाय १ खुद राजेन्द्र बाबू भी उसमें होंगे। तो क्या मेरे सामने उनकी भी कोई कीमत न होगी। क्या किसान सभा का या मेरा इतना महत्त्व सरकार और जमींदारों की नजरों में बढ़ गया । मैं तो यह सुन के हैरान हूँ। मेरी इन बातों का उत्तर वे लोग क्या देते! अाखिर कोई बात मी तो हो। और अगर किसान-सभा की या मेरी अहमियत इतनी मान लें, तो फिर कांग्रेस को क्या कहें १ उसे तो उन्हें सबके ऊपर रखना था। फिर