पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२०२

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( १४५ ) हिस्सा जो पड़ा है पिछला तो भैया का है। फिर मैं दूध पाता तो कैसे । हाँ, सोंग वगैरह की सुन्दरता से सन्तोष करता हूँ। गोचर-मून से भी बचता हूँ। यही क्या कम है ? भैया ने बड़ी कृपा करके मुझे अगला भाग ही दिया है। भाई हो तो ऐसा हो । इतने से ही आगन्तुक ने समझ लिया कि इसमें चाल क्या है। उसने छोटे भाई से कहा कि तो फिर बड़ा भाई भी दूब क्यों निकाल लेता है ? यदि तुम अगले हिस्से को खिलाते-पिलाते हो तो वह भी पिछले हिस्से का गोबर-मूत फेंके। यह क्या बात है कि तुम तो कमाते कमाते और खिलाते खिलाते मरो और वह मजा चखे १ जब एक काम तुम करते हो तो वह भी एक ही करे । भैंस के दुह लेने का दूसरा काम वह क्यों करता है ? उसे जाके रोकते क्यों नहीं हो ? आखिर दोनों को पूरा पूरा काम करना होगा। क्योंकि हिस्सा तो बराबर ही है न ! उसका यह कहना था कि उस सीधे भाई के समझ में बात आ गई। आगन्तुक ने इसके पहले जो दूध के बँटवारे आदि को बातें कही थीं वह उसके दिमाग में नहीं घुसी ओर नहीं धो । हालाँकि बातें थो सही । हमने देखा है कि किसान हो जोत-बो के फसल पैदा करते हैं। मगर जब तक जमादार हुक्म न दे एक दाना भी नहीं छूते और पशुओं को तथा बाल-बच्चों को मो भूखों मारते हैं । यदि उनसे कहिये कि ऐसा क्यों करते हो ? खाते-पोते क्यों नहीं हो ? तो बोल वैठते हैं कि राम राम, ऐसा कैसे होगा ? ऐसा करने से पाप होगा। जमींदार का उसमें हिस्सा जा है। चाहे हजार मायारची कोजिये कि जमींदार तो कुछ करता-धरता नहीं । जमीन भी उसको बनाई न होके भगवान या प्रकृति की है। इस पर न जाने कितने मालिक बने और गये। जोई बली होता है वही जमीन पर दखल करता है.--"वीर भोग्या वसुन्धरा ।" मगर उनके दिमाग में एक भी बात घुमतो नहीं और यह धर्म, पाप और हिस्से का भूत उन्हें सताता ही रहता है। यही हालत छोटे भाई की भी थी। और जैसे सीधी बात उसके दिल में फँस गई उसी तरह सीधी बात किसानों को भी अँच जाती है।