कता है यह हमने साफ देखा । राजनीति या रोबी के प्रश्न का कोरी दुनियादी चीज मानना कितनी अच्छी चीज है यह हम बखूबी देख पाये। वसात जिले के नेइली थाने के एक नुग्लनान जन तत्यानही के लर में ही तेज पधारे थे। नोचे ते अरर तक खादोनय दिखे। सोधे-सादे श्राइनी थे देखने ते मान्न होता था कोई पज्ञा देहती है । धोतो और कुर्ते के साथ गांधी को बराबर हो नजर अातौ यो। हमने पाँच छे नहीने के दान उनका सर गांधी टोनी ते दना कभी न देखा। एक बार तो यहाँ तक सुना कि उनने जेल के कपड़े लेने से इनकार कर दिया । निर्म इतीजिये कि वे खादों के न थे। हालांकि गांधी जी का हुक्म है कि जेल में खादी का आग्रह न करके जो करड़े निले उन्हीं को कल करना होगा । जब चनारन के प्रमुख गांधी वादी नेता ने उन्हें यह बात नमनाई तो उनने उत्तर दिया कि भार और गांधी जो सनर्थ हैं। इसलिये चाहे जो कपड़े पहने नगर मैं तो ना चोज हूँ। किर नुमते कैली ऐसी उम्मीद करते हैं ? पोछे उनने जेज के करड़े मजबून लिये रही। नगर वे कितने पक्के गांची भक्त हैं इस पूरा तबूत इन्ते मिल जाता है । नमाजी तो वे रके हैं यह नबने देखा है। गांवी जी तो धर्म पर जोर देते ही हैं । फिर वे ऐले हाते क्यों नहीं ? मगर धर्म की बात कैतीधी है इतका भी प्रकार इनीने मिन जाता है कि जब उनने धर्म बुद्धि ते एक बार खादी पहन ली, ता किर गांवी जी का हजार दुहाई देने पर भी वे दून्य कपड़ा लेने को तब तक राजी न हुर जब तक मजबूर न हो गये । राज- नीति में धर्म को धुत्तेड़ने वाले गांधी जी का मो इतते सीखना चाहिये कि वह उनकी बात भी मानने को तैयार न थे। उनने एक ऐना अन्न धर्म के नाम पर अपने अनुयायियों को दे दिया है कि खुद उनकी बातें भी वे लोग नहीं मानते और दलील देते हैं धन की ही। यह दधारी तलवार दोनों ओर चलती है यह गांघो जी याद रखें। उन हजरत की तो मोरी दलील यही थी कि जब एक बार खादी की पहनना धन हो गया तो जिर उता त्याग कैले उचित होगा। गांधी जी को यह मो न भूलना चहिये कि श्राम लोग ऐसे ही होते हैं गांधी जी की बुद्धि तब को तो होती नहीं कि धर्म की पेचीदगिर्या
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