पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२०८

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--- समझ सकें । इसलिये यह बड़ी खतरनाक चीज है, खासकर दुनियात्री और राजनीतिक मामलों में। अच्छा आगे चलिये । वे हजरत ज्योंही हजारीबाग जेल में आये उसके एकी दो दिनों बाद एक मुसलमान सजन ने उनके बारे में मुमते नाके कहा कि एक मुसलमान आये हैं। उनने गोदाम में मुझे देखते ही आतुर भाव से कहा है कि भई, मुझे भी मुसलमान के हाथ का पकाया खाना खिलायो । इतने दिनों तक तो मैं फल फूल खाते खाते घबरा गया हूँ। सभी लोग ता हिन्दू ही मिले। फिर उनके हाथ को पकाई चीजें खाता तो कैसे खाता ? तुम मुसलमान हो और अपना खाना अलग पकवाते हो । इसलिये मुझे भी उसी में शामिल करलो तो मैं बहुत ही उपकार मानूँगा, आदि आदि । जिस मुसलमान ने मुझसे ये बातें कहीं वह भी उनकी बातें सुनके हैरत में था। हैरत की बात भी थी। यह बात आमतौर से यहाँ देखी गई है कि कुछेक को छोड़ सभी हिदुन्नों को मुसलमानों के हाथों पकी चीजें खाने में कोई उज्र नजर नहीं हुआ। कइयों ने तो खामखाह मुसलमान पकाने वाले रखे हैं । इसलिये उनकी बातों से चौकने का पूरा मका था। मगर मैं सुनके हँसा और फौरन समझ गया कि हो न हो यह धर्म महाराज की महिमा है । खैर, वह मुसलिम सजन उस मुसलमान के चौके में ही कई साथियों के साथ बहुत दिनों तक खाते रहे यह मैंने अपनी आँखों देखा। अब एक दूसरी ऐसी ही घटना सुनिये । बड़ी असेम्बलो के एक हिन्दू जमींदार मेम्बर भी इसी जेल में थे । पहले तो मुझे कुछ पता न चला । मगर पीछे कई बातों के सिलसिले में पता चला कि यदि मुसलमान उनको खाने पीने की चीजों के पास चला जाय या छू दे तो वह उन्हें खाते नहीं थे। वे अपना खाना एक आदमी के साथ अलग ही पकवाते थे। कहने के लिये कहर गांधीवादी । गांधी जी के विरुद्ध एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं । किसान-सभा या समाजवाद के भी ऐसे दुश्मन कि कुछ कहिये मत । नगर धर्म के भक्त ऐसे कि मुसलमान के सर्श से हिचक ! मुसलमान को छाया