पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२१

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अपना प्रभुत्व जमाया। उसे कायम रखने के लिये उन्हीं लोगों ने आन्ध्र में आन्ध्रप्रान्तीय रैयत असोसियेशन के नाम से एक किसान-सभा उस समय, १९२३-२४ में बनाई, ऐसा कहा जाता है। मगर उसकी कोई विशेष कार्य-शीलता पाई न गई। अलबत्ता बिहार में इस लेखक ने अपने कांग्रेसी साथियों के सहयोग से १९२७ में नियमित रूप से, सदस्यता के आधार पर, किसान-सभा की स्थापना पटना जिले में करके धीरे-धीरे १९२९ में उसे बिहार प्रान्तीय किसान-सभा का रूप दिया। उस समय बिहार की कौंसिल में किसान-हित-विरोधी एक बिल सरकार की ओर से पेश था और जरूरत इस बात की थी कि किसान उसका संगठित विरोध करें। इसीलिये कांग्रेसी नेताओं ने बिहार प्रान्तीय किसान-सभा की जरूरत महसूस की और इसीलिये उसका जन्म हुआ। उसमें कांग्रेस के सभी लीडर शामिल थे, सिवाय स्वर्गीय ब्रजकिशोर बाबू के। उस सभा का काम लेखक की अध्यक्षता में खूब जोरों से चला और अन्त में सरकार को वह बिल लौटा लेना पड़ा। इस तरह जन्म लेते ही सभा को अभूतपूर्व सफलता मिली। वर्त्तमान प्रधान मंत्री बा॰ श्रीकृष्ण सिंह उस समय किसान-सभा के मंत्री थे। आगे चलकर सभा को और भी संघर्ष करने पड़े। इस प्रकार संघर्षों के बीच वह फूली, फली और सयानी हुई।

सन् १९१८-१९ में ही इलाहाबाद में श्री पुरुषोत्तमदास जी टण्डन की देख-रेख में किसान-आन्दोलन शुरू हुआ था और उसने कुछ काम भी किया। उसके बाद, असहयोग के उपरांत, कांग्रेसजन इस काम में और भी लगे, यहाँ तक कि १९३२ के सत्याग्रह से पूर्व वहाँ की प्रांतीय कांग्रेस कमिटी ही एक किसान समिति के द्वारा किसानों में आन्दोलन चलाती रही, तथा जरूरत होने पर उन्हें करबन्दी के लिये भी तैयार करती रही, जिसके फलस्वरूप वहाँ किसानों ने १९३२ के कांग्रेस संघर्ष में करबन्दी को तेजी से चलाया। श्री टण्डन जी ने ही उसी के बाद प्रयाग में "केन्द्रीय किसान संघ" की स्थापना की, जो भावी अखिल भारतीय किसान-सभा के सूत्ररूप में ही था। पं॰ नेहरू, टण्डन जी प्रभृति