कार्य में पूर्णतः संलग्न भी हैं। आज भारत के कोने-कोने में किसान संगठन की पुकार है, तेज आवाज है और यह शुभ लक्षण है।
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किसान-सभा किसानों की वर्ग संस्था है। वर्ग से अभिप्राय है आर्थिक वर्ग से, न कि धार्मिक या जातीय वर्ग से। किसान वर्ग के शत्रुओं, जमींदार-मालदारों से किसानों की रक्षा करना और उनके संगठित प्रयत्न के द्वारा उनके हकों को हासिल करना इस सभा का ध्येय है। जब तक सभी प्रकार के आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक शोषणों का अन्त होकर वर्गविहीन समाज नहीं बन जाता तब तक यह लक्ष्य हासिल नहीं होगा। फलतः इस ध्येय का, इस लक्ष्य और मकसद का पर्यवसान इस वर्ग-विहीन समाज में ही होता है जिसमें मनुष्य का शोषण मनुष्य न कर सके, सबों को अपने सर्वांगीण विकास की पूरी सुविधा हो और इस प्रकार मनुष्य मात्र की सारी जरूरतों की पूर्ति निराबाध और बेखटके होती रहे।
इसीलिये सभी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के उन लोगों की यह संस्था है जिन्हें खेती करनी पड़ती है, जो खेतिहर हैं और प्रधानतया खेती करे बिना जिनकी जीविका नहीं चल सकती है। इस प्रकार खेत-मजदूरों की भी संस्था यह किसान-सभा है। खेत-मजदूर किसानों के भीतर आ जाते हैं। वे दरअसल किसान हैं, जमीन जोतने-बोने वाले हैं, (tillers of the Soil) है। फिर वे किसान वर्ग से पृथक कैसे रह सकते हैं? यह भी नहीं कि खेत-मजदूर, हरिजन, अछूत या किसी धार्मिक सम्प्रदाय विशेष के भीतर आते हैं। आज परिस्थिति ऐसी है कि हर साल पूरे नौ लाख से भी ज्यादा किसान अपनी जोत-जमीन गँवा कर, बिना खेत के या यों कहिये कि खेत-मजदूर बनते जा रहे हैं और वे सभी जातियों और धर्मों के हैं। उनमें कुछी लोग दूसरी जीविका कर पाते हैं। अधिकांश खेत-मजदूर ही बनते हैं-अधिकांश को मजबूरन खेत-मजदूर ही बनना पड़ता है।