( २१२ ) पड़ा। अनजान आदमी के रास्ते में तो पग पग पर रोड़े अटकते है। सो भी किसान-श्रान्दोलन जैसो विकट चीज की कोशिश में। हमारे चारों ओर विरोधियों का गुह था। सभी कमरबन्द खड़े थे कि का मौका पायें और सारी चीज खत्म कर दें। हम तो पहले पहल सन् १९२० ई० में कांग्रेसी राजनीति में ही आये थे। वहीं से सन् १६२७ ई० में किसान-सभा बनाने की ओर झुके । मगर हमारे इस काम में कांग्रेसी साथियों ने और नेताओं ने भी, पहले तो कम पीछे ज्यादा, विरोध किया । पहले वे लोग समझी न सके कि क्या हो रहा है। इसलिये यदि किसी का विरोध भी था तो वह दचा था। पीछे तो जैसे जैसे किसान सभा मजबूत होती गई वैसे वैसे विरोध भी प्रबल होता गया। यहाँ तक कि इधर कुछ दिनों से कांग्रेस की सारी ताकत सभा के खिलाफ हो गई। हमारे पुराने साथियों में भी बहुतेरे डूब के पानी पीने लगे। वे भी इस आन्दोलन से भयभीत हो गये । मगर हम बढ़ते ही रहे हैं और बढ़ते ही जायँगे यही विश्वास है । अब तक जो कुछ संस्मरण लिखे गये हैं वे तो मधुर तो हई । साथ ही पढ़ने वालों के लिये आन्दोलन के भीतर झाँको का काम देते हैं। जिन्हें कुछ भी किसान-सभा में चसका है उन्हें इनसे काफी हिम्मत और सहायता मिलेगी जिससे काम बढ़ा सके। वे देखेंगे कि किसान आन्दोलन कोई फलों का ताज नहीं है । इसीलिये कमजोर लोग शुरू में ही हिचक जायँगे । यह ठीक ही है । इसमें कितना धोखा है इसकी भी जानकारी पढ़ने वालों को हुए बिना न रहेगी। इससे सच्चे और ईमानदार किसान सेवकों को खुशी होग और खतरे की जानकारी भी। तभी तो उससे मौके पर बच सकेंगे। अव तक तो सभा की जड़ कायम करनी थी। मगर अब उसे आगे बढ़के असली काम करना है। इसलिये बहुत ढंग के खतरों से खामखाह बचना होगा। इस बात में संस्मरणों से मदद मिलेगी। गरम बातें और नरम काम को खतरा हमें अब ज्यादा है। इसलिये अभी से सजग हो जाना होगा । हमें मन भर बाते नहीं चाहिये । बल्कि बिना उन बातों के यदि केवल काम ही हो और रत्ती भर भी हो तो कोई हर्ज नहीं। उसमें धोखा नहीं होगा। बातें
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