पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२

हमें उतनी ही शीघ्रता से मिलेगी। इसीलिये हर किसान को इस राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत होना ही और कांग्रेसी बनना ही चाहिये ताकि हमारा मुल्क जल्द से जल्द पूर्ण स्वतंत्र हो। गुलाम भारत में किसान-राज्य या समाजवाद की आशा महज नादानी है।

इस प्रकार जब किसान कांग्रेस को शक्तिशाली बनायेंगे सीधी लड़ाई के द्वारा और चुनावों में मत देकर भी, तो इसके बदले में कांग्रेस को भी उनका खयाल करना ही होगा। और उनके हकों के लिये समय-समय पर लड़ना ही होगा। इन कार्यक्रमों और जमींदारी मिटाने की बात मान कर कांग्रेस यही करती भी है। कांग्रेसी नेता खूब समझते हैं कि यदि वे ऐसा न करेंगे और जमींदारी न मिटायेंगे, तो उन्हें खुद मिट जाना होगा, उनकी लीडरी जाती रहेगी और कांग्रेस भी खत्म हो जायेगी। यह ठोस सत्य है। राष्ट्रीयता सर्वथा उपादेय और सुन्दर चीज होने पर भी वह भावुकता की वस्तु है, भावना और दिमाग की चीज है, महज खयाली पदार्थ है। वह कोई ठोस भौतिक पदार्थ नहीं है, ठीक जिस प्रकार धर्म, ईश्वर और स्वर्ग-नर्क आदि हैं। ये भी महज खयाली हैं। इसीलिये समय-समय पर भौतिक पदार्थों-जर, जोरू, जमीन के सामने ये टिक नहीं सकते, इनकी अवहेलना होती है और लोग जमीन-जायदाद के लिये गंगा-तुलसी, कुरान-पुरान आदि उठाकर झूठी कसमें खाते हैं। इसी प्रकार भौतिक हितों के निरन्तर विरोध में यह राष्ट्रीयता टिक नहीं सकती, इसे मिट जाना होगा। यही वजह है कि कांग्रेसी लीडर किसानों के भौतिक हितों की बातें समयानुसार करते रहते हैं। भावनामय कोरी राष्ट्रीयता भौतिक स्वार्थों को साथ लेकर ही टिक सकती है, लक्ष्य-सिद्धि में कामयाब हो सकती है। यदि इन भौतिक स्वार्थों को वह छोड़ दे या उनसे टकरा जाय, तो उनके लिये भारी खतरा बेशक पैदा हो जायगा।

मौत बुरी है, बड़ी खतरनाक है। उसके मुकाबिले में जूते की काँटी का चुभना कोई चीज नहीं है। फिर भी मौत से बचने के लिये कोई शायद ही फिक्रमन्द दीखता है। मगर काँटी के कष्ट से बचने का यत्न सभी करते