पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/३३

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ब्रेक है क्या चीज, यदि विरोध, रुकावट या 'अपोजीशन' नहीं है? उन दिनों किसान-सभा ने कांग्रेसी मंत्रियों को क्या गिराना या पदच्युत करना चाहता था? क्या इसका कोई प्रमाण है? उसने तो सिर्फ खतरे और खामियाँ सुझाकर मंत्रियों को समय समय पर सजग किया कि सँभल कर काम करें, जमींदारों के माया-जाल और चकमे में पड़कर पथ-भ्रष्ट न हों। फलतः मंत्री लोग सँभले जरूर और इस तरह किसानों को अपने साथ रख सके। आखिर तेली के बैल की तरह किसानों की आँखें मूँद कर हमेशा के लिये रखी नहीं जा सकती थीं। वे खुलती कभी न कभी जरूर और कांग्रेस के लिये बुरा होता। यदि अपने आप खुलतीं या यदि कहीं कांग्रेस के शत्रु खेलते तो तब तो भारी खतरा होता। किसान-सभा ने इन दोनों से कांग्रेस को बचाया। फलतः इसके लिये उसका कृतज्ञ होने के बजाय यह उलाहना और गुस्सा? उसने मित्र का काम किया। फिर भी यह नाराजी?

यह भी बात है कि राष्ट्रीय संस्था होने के नाते कांग्रेस सभी वर्गों की संस्था है। उसमें सभी वर्ग शरीक हैं, वह सभी दलों और श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करती है। यही उसका दावा है। यही चाहिये भी। तभी सभी वर्ग के लोग उससे चिपकेंगे, उसे अपनी संस्था मानेंगे और फलस्वरूप उसे मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे। ऐसी दशा में वह किसानों की संस्था या सभा कैसे हो सकती है? वह केवल एक वर्ग का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकती है? यह तो उसकी कमजोरी का सबसे बड़ा कारण होगा; कारण, तब जमींदार, मालदार आदि दूसरे वर्ग उसका न सिर्फ साथ न देंगे, प्रत्युत उसके घोर शत्रु हो जायँगे। जमींदारी मिटाने का प्रश्न जो मुआविजा देकर उठाया गया है, उसका भी यही तात्पर्य है। जमाना बदल रहा है और अपार धन-सम्पत्ति लेकर जमींदार उसे उद्योग-धन्धों में लगायेंगे और मालामाल होंगे। जमीन से होने वाली एक बँधी-बँधाई आमदनी की जगह कल-कारखानों से होने वाली उत्तरोत्तर वृद्धिशील आमदनी होगी इनः जमादारों को, फिर चाहिये क्या? उस दशा में जमींदार कांग्रेस के शत्रु क्यों बनें? यदि वे विरोध करते हैं तो या तो नादानी से या यह उनकी