पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/५४

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गद्दी पर बिठाते हैं तो इन्हें अपना समझ किसानों का हौसला बढ़ना स्वाभाविक है और इसी के फलस्वरूप ये संघर्ष होते हैं। किसान समझते हैं कि हमारे बनाये मंत्री इन मामलों में हमारी सहायता करेंगे। नौकरशाही सरकार से उन्हें यह अाशा तो होती नहीं, इसी से उस समय ये संघर्ष कठिन हो जाते हैं और कम होते हैं। और जब जनप्रिय सरकार बनी तो जनता को स्वभावतः आजादी ज्यादा होती ही है। वह अपने हाथ-पाँव जरा फैला पाती है, फैलाने की कोशिश करती है । उसकी छाती की चटान जरा हटी सी मालूम पड़ती है, उसकी हथकड़ी-वेड़ियाँ जरा ढीली और टूटी सी लगती हैं । फिर हाथ-पाँव फैलाये क्यों न १ और ये सघर्ष उसी फैलाने के मूर्त-रूप हैं, फिर इन्हें देख गुस्सा क्यों । इनके लिये उलाहना और इलजाम क्यों ? ये कांग्रेसी मंत्रियों को परीशान करने के सुबूत न होकर उलटे कांग्रेस में और उसके मंत्रियों में जनता के अपार विश्वास के ही सुबूत हैं।

अन्त में हमें कहना है कि कांग्रेस की असली ताकत न तो उसके अनुशासन की तलवार है, न उसकी कमिटियाँ और न उसके चवनियाँ मेम्बर, प्रतिनिधि आदि । उसकी असली शक्ति अपार जमूहन-स की उसमें अटूट भक्ति है-उस भारतीय जन-समूह की भक्ति, जो चवनियाँ मेम्बर • तक नहीं है, मगर जो उसे चुनाव में जिताता और संवर्ष में विजय माता है। अच्छा हो कि कांग्रेस के कर्णधार यह न हो, वह न हो, किसान-समा न बने, मजदूर यूनियन न बने और अगर बने तो कांग्रेस की मातहती में, आदि फिजूल बातें छोड़ उस अपार जनता के कष्टों को सममें और उन्हें • दूर करने में कोर-कसर न रखें । फिर देखेंगे कि कांग्रेस अजेय है और ऐसा न होने पर वह दुर्ग ढह जायगा, यह कटु सत्य है ।

विटा, पटना •वसन्त पंचमी २७.१.४७ } -स्वामी सहजानन्द सरस्वती