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पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/६९

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संघर्ष के मध्य में वह जन्मी और संघर्ष ही में पलते-पलते सयानी हुई है। इसीलिये वह काफी मजबूत है भी 1, शोपित. जनता की वर्ग: संस्थानों को इसी.प्रकार बनना और बढ़ना चाहिये, यही...क्रांतिकारी मार्ग है । लेनिन ने कहा भी है कि हमें जनता से और अपने अनुभवों सेः सीखकर ही जनता का. पथ-प्रदर्शन करना चाहिये। जनता अपने ही अनुभव से सीख- कर जब नेताओं की बातों पर विश्वास करती है और उन्हें मानने लगती हैं तभी वह हमारा साथ देती है, ऐसा स्तालिन ने चीन के सम्बन्ध के विवरण में कहा है :-

“The masses themselves should become con vinced from their own experience of the correct- ness of the instructions, policy and slogans of the vanguard."

इसीलिये बजाय शर्म के खुशी की बात है कि अनुभव के बल पर ही हम आगे बढ़े हैं और इसमें किसानों को भी साथ ले सके हैं।

मगर हमारे क्रांतिकारी नामधारी दोस्तों की एक बात तो हमारे लिये पहेली ही रहेगी। जब हम उसे याद करते हैं तो एक अजीब घपले में पड़ जाते हैं। हमारे दोस्तों का दावा है कि किसान सभा को वही क्रांतिकारी मार्ग पर ला सके हैं; उन्होंने ही उसे क्रांतिकारी प्रोग्राम दिया है आदि आदि । जब हम पहली और ठेठ ग्राज की उनकी ही कार्यवाहियों का खयाल करते हैं तो उनका यह दावा समझ में नहीं पाता । उनमें एक भाई का दावा है-और बाकी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं कि उनने ही ज़मींदारी मिटाने का प्रस्ताव पहले पहल किसान सभा में पेश किया था। शायद उन्हें यह बात याद नहीं है कि उनकी पार्टी के जन्म के बहुत पहले. युक्त .प्रान्त में श्री पुरुषोत्तमदास टण्डन ने एक केन्द्रीय किसान संघ बनाया था और दूसरी-दूसरी अनेक बातों के साथ ही जमींदारी मिटाने की बात उस संघ ने मान ली थी। जब सन् १६३४ ई० की गर्मियों में वे द्वितीय प्रान्तीय किसान सम्मेलन का सभापतित्व कैस्ने गया में पाये थे