पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/७१

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कारण है कि खासमहाल में, जहाँ सरकार ही जमींदार है, जमींदारी मिटाने की बात इस प्रस्ताव के पास होने पर भी नहीं उठती। अतएव जो लोग जमींदारी को सर्वत्र ही खासमहाल बना देना चाहते हैं उनके लिये यह प्रस्ताव स्वागतम् है । फिर भी इसी पर दोस्तों की इतनी उछल-कूद है।

उस सभा में जमींदारों के दोस्त काफी थे । वहीं पर एक चलते-पुर्जे. जमींदार हैं जो एक मठ के महन्त हैं। उनके इष्ट-मित्रों की संख्या काफी यी और जी हुजूरों की भी। उनने उसका खूब ही विरोध किया। मगर. सफलता की आशा न देख यह प्रश्न किया और करवाया कि स्वामी जी भी यहीं हैं । अतः उनसे भी इस प्रस्ताव के बारे में राय पूछी जाय कि वे इसके पक्ष में हैं या नहीं और यह प्रस्ताव प्रान्तीय किसान सभा के सिद्धान्त के विपरीत है या नहीं। उन लोगों का खयाल था कि मैं तो इसका विरोध करूँगा ही और प्रान्तीय सभा के मन्तव्य का विरोधी भी इसे जरूर ही बताऊँगा । मगर में नहीं चाहता था कि बीच में पड़े। मैं चाहता था कि मेरे या किसी दूसरे के प्रभाव के बिना. ही लोग खुद स्वतंत्र रूप से सय कायम ‘करें। मुझे तो किसानों की और जनता की भी मनोवृत्ति का ठीक-ठीक पता लगाना था, जो मेरे कुछ भी कहने से नहीं लग सकताः था। कारण, लोग पक्ष या विपक्ष में प्रभावित हो जाते।

परन्तु विरोधियो ने इस पर जोर दिया हालाँकि प्रस्ताव वाले शायद डरते थे कि मेरा बोलना ठीक नहीं । जब मैंने देखा कि बड़ा जोर दिया जा रहा है और न बोलने पर यदि कहीं प्रस्ताव गिर गया तो बुरा होगा, तो अन्त में मैंने कह दिया कि मैं व्यक्तिगत रूप में इस प्रस्ताव का विरोधी तो नहीं हो हूँ। साथ ही, प्रान्तीय किसान सभा के सिद्धान्त के प्रतिकूल भी यह है नहीं। क्योंकि यह तो सभा से सिफारिश ही करता है कि यह बात मान ले । बस, फिर क्या था, बिजली सी दौड़ गई और बहुत बड़े बहुमत से प्रस्ताव पास मैंने यह भी साफ ही कह दिया कि यह प्रस्ताव तो लोकमत तैयार करता है और उसे जाहिर भी करता है, जहाँ तक जमींदारी या शोषण मिटाने का सवाल है । ऐसी हालत में हमारी सभा इसका स्वागत ही करेगी। हुआ।