पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/७५

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स्वरूप हम कितनों को ही कांग्रेस से अलग होना पड़ा। इतने पर भी किसान-सभा को कांग्रेस के नीचे और उसकी मददगार मात्र बना देने की समझ और हिम्मत की तारीफ है।

चाहें पहले किसी को ऐसा खयाल करने की गुंजाइश रही भी हो; क्योंकि शुरू में जान-बूझकर किसान सभा इसी प्रकार चलाई गई थी कि किसी को शक न हो कि यह सोलहों आने स्वतंत्र चीज है, संस्था है; इससे इसके प्रति बाल्यावस्था में ही भयंकर विरोध जो हो जाता इसीलिये एक प्रस्ताव के द्वारा यह कहा गया था कि राजनीतिक मामलों में सभा कांग्रेस का विरोध न करेगी । मगर फिर भी यह कभी न कहा गया कि उसकी मातहत है या उसकी मदद करेगी । मगर जब हमने सन् १९३५ ई० के. बीतते न बीतते हाजीपुर वाले सम्मेलन में जमींदारी मिटाने का निश्चय कर लिया तब भी इसे ऐसा समझना कि यह कांग्रेस की मातहत है, निराली सी बात है। जमींदारी मिटा देने की बात एक ऐसी चीज है जो बता देती है साफ-साफ कि किसान-सभा और कांग्रेस दो जुदी संस्थाएँ हैं जिनके लक्ष और रास्ते भी जुदे हैं, भले ही मौके व मौके मतलबश दोनों का मेल हो जाय.। हम तो जमींदारी वगैरह के बारे में साफ जानते हैं कि ता० १२.२-२२ ई० को बारदौली में कांग्रेस की कार्यकारिणी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करते हुए इस सम्बन्ध में जो कहा था वही श्राज़ तक कांग्रेस की निश्चित नीति है । उस कमिटी के प्रस्ताव की छठीं और. सातवीं धाराओं में यह बात साफ लिखी है। वह यों हैं :-

"The working committee alvises Congress workers and organisaions to inform the roots (paasants) that withholding of rent.payment to the zamindar: (land-lords) is contrary to the Congress resolution and injurious to the best interest of the country. .