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पृष्ठ:कुँवर उदयभान चरित.djvu/२०

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कुँवर उदयभान चरित।


मुंह में लेके उड़ना वरे रहे उसके और और बातें इस इस ढव की ध्यान में थीं जो कुछ कहने और सुन्ने से बाहर हैं। मेंह सोने और रूपे का बरसा देना और जिस रूपमें चाहना हो जाना। सब कुछ उसके आगे एक खेल था और गाने में और बीन बजाने में महादेव जी छुट सब उसके आगे अपने कान पकड़ते थे। सरस्वती जिसको हिन्दू कहते हैं आदिशक्ति उन्ने उसी से कुछ कुछ गुनगुनाना सीखा था। उसके साम्हने छ राग छत्तीस रागनियां आठ पहर बंधुवों का सा रूप धरे हुए उसकी सेवा में हाथ जोड़े खड़ी रहती थीं वहां अतीतों को यह कहकर पुकारते थे भैरोंगिर विभासगिर हिण्डोलगिर मेघनाथ किदारनाथ दीपक दास जातीसरूप सारङ्गरूप और अतीतने इस ढव से कहलाती हैं गूजरी टोड़ी असावरी गौरी मालसिरी बिलावल। जब चाहता था अधर में सिङ्गासन पर बैठ के उड़ाये फिरता था और नव्वे लाख अतीत गुटके अपने मुंहमें लिये हुए गेरुवे बसतर पहने हुए जटा बिखारे उसके साथ होते थे। जिस घड़ी राजा जगतपरकास की चिट्ठी एक बगला ले पहुंचता है जोगी महेन्दरगिर एक चिंघाड़ मार के दल बादलों को ढलका देता है बाघंबर पर बैठ भभूत अपने मुंहमें मल कुछ कुछ पढ़न्त करता हुआ पवन के घोड़े की पीठि लगा और सब अतीत मृगछालों पर बैठे हुए गुटके मुंहमें लिये हुए बोल उठे गोरख जागा एक आंख की झपक में वहां आन पहुंचता है जहां दोनों महाराजों में लड़ाई हो रही थी। पहले तो एक काली आंधी आयी फिर ओले बरसे फिर एक बड़ी आंधी आयी किसी को अपनी सुध बुध न रही। हाथी घोड़े और जितने लोग और भीड़ भाड़ राजा सूरजभान की थी कुछ न समझा गया किधर गयी और इन्हें कौन उठा लेगया और राजा जगतपरकास के