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कुँवर उदयभान चरित।


लोगों पर और रानी केतकी के लोगों पर केवड़े की बूंदों की नन्ही नन्ही फुहार सी पड़ने लगी। जब यह सब कुछ हो चुका तो गुरूजी ने अपने अतीतों से कहदिया उदयभान सूरजभान लछमीबास इन तीनों को हिरन हिरनी बना के किसी बनमें छोड़ दो और जो इनके साथी हों उन सभोंको तोड़ फोड़ दो। जैसा कुछ गुरूजीने कहा झटपट वैसा ही किया। बिपत का मारा कुंवर उदयभान और उसका बाप वह महाराजा सूरजभान और उसकी मा वह महारानी लछमीबास हिरन हिरनी बन वन की हरी हरी घास कई बरस तक चुगते रहे और उस भीड़ भड़के का तो कुछ थल बैड़ा न मिला जो किधर गयी और कहां थी॥ यहां की यहां ही रहने दो आगे सुनो अब रानी केतकी की बात और महाराजा जगतपरकास की सहनी इनका घरका घर गुरूजी के पावों पर गिरा और सबने सिर झुका कर कहा महाराज यह आपने बड़ा काम किया हम सब को रख लिया जो आज न आप पहुंचते तो क्या रहा था सब ने मरमिटने की ठान ली थी। इन पापीयों से कुछ न चलेगी यह जानली थी। राजपाट सब हमारा अब निछावर करके जिसको चाहिये दे डालिये हम सब को अतीत बना के अपने साथ लीजिये राज हमसे नहीं थमता सूरजभान के हाथ से आपने बचाया अब कोई इनका चचा चन्दरभान चढ़ आवेगा तो क्योंकर बचना होगा अपने आप में तो सकत नहीं फिर ऐसे राजा का फिट्टे मुंह हम कहां तक आप को सताया करेंगे यह सुनकर जोगी महेन्दरगिरं ने कहा तुम सब हमारे बेटे बेटी हो आनन्दं करो दनदनावो सुख चैनसे रहो ऐसा वह कौन है जो तुम्हें आंख फेर और ढबसे देख सके यह बाघम्वर और यह भनूत हमने तुम्हें दिया आगे जो कुछ ऐसी गाढ़ पड़े तो इस बावम्बर में से एक रोंगटा तोड़ कर आग पर धर के