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पृष्ठ:कुँवर उदयभान चरित.djvu/३०

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कुँवर उदयभान चरित।


केतकी को अपनी गोद में लेके कुँवर उदयभान का चढ़ावा चड़ा दिया और कहा तुम अपने बाप के साथ अपने घर सिधारो अब मैं अपने बेटे कुँवर उदयभान को लिये आता हूं गुरूजी गुसाई जिनको दण्डवत है सो तो यों सिधारते हैं आगे जो होगी सो कहने में आवेगी यहां की यह धूमधान और फैलावा अब ध्यान कीजिये महाराजा जगतपरकास ने अपने सारे देसमें कहा यह पुकारदे जो यह न करेगा उसकी बुरी गत होगी गांव में आमने सामने तिरपौलिये बना बना के सूहे कपड़े उनपर लगादो और गोट धनक की और गोखरू रुपहरे सुनहरे किरने और डांक टांक टांक रक्खो और जितने वड़ पीपल के पुराने पुराने पेड़ थे जहां जहां हों उन पर गोटों के फूलोंके सिहरे हरी भरी बड़ी ऐसे जिसमें सिर से लगा जड़ तलक उनकी थलक और झलक पहुंचे बांध दो॥

॥चौतुक्का॥

पौदों ने रंगा के सूहे जोड़े पहने। सब पांउ में डालियों ने तोड़े पहने॥
बूटे बूटे ने फूल फल के गहने। जो बहुत न थे तो थोड़े थोड़े पहने॥

जितने डहडहे और हरियावल में लहलहे पात थे सबने अपने अपने हाथ में चुहचही मिहँदी को रचावट सजावट के साथ जितनी समावट में समा सकी करली और जहां तलक नवल ब्याही दुल्हन नन्हीं नन्हीं फलियों की और सुहागनें नयी नयी कलियों की जोड़े पंखड़ियों के पहने हुए थीं सब ने अपनी अपनी गोद सुहागप्यार की फूल और फलों से भरलीं और तीन बरस का पैसा जो लोग दिया करते थे उस राजा के राज भर में जिस जिस ढब से हुआ खेती बारी करके हल जोत के और कपड़ा लत्ता बेच खोंच के सो सब