पृष्ठ:कुँवर उदयभान चरित.djvu/३१

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कुँवर उदयभान चरित।


उनको छोड़ दिया अपने अपने घरों में बनाव के ठाठ करें और जितने राज भर में कुवे थे खण्डसालों की खण्डसालें लेजा उनमें उण्डेली गई और सारे बनों में और पहाड़ तलियों में लालटैनों की बहार झमझमाहट रातों को दिखाई देने लगी और जितनी झीलें थीं उन सब में कुसुम और टेसू और हरसिंगार तैरगया और केसर भी थोड़ी थोड़ी घोलो में आगयी और फुनंगे से लगा जड़ तलक जितने झाड़ झांखरों में पत्ते और पत्तों के बन्धे छूटे थे उनमें रुपहले सुनहले डांक गोंद लगा लगा के चिपकादिये और कह दिया गया जो सूही पगड़ी चौर सूहे बागे बिन कोई किसी डौलका किसी रूपसे न फिरे चले और जितने गवइये नचइये भांड भगतिये ढांडी रासधारी और संगीत नाचते हुए हों सबको कह दिया जिन जिन गावों में जहां जहां हों अपने अपने ठिकानों से निकल कर अच्छे अच्छे बिछौने बिछाकर गाते वजाते धूम मचाते नाचते कूदते रहा करें॥


ढूंढना गुसाईं महेन्दरगिर का उदयभान और उसके मा बापको और न पाना और बहुतसा तलमलाना और राजा इन्दर का उसकी चिट्ठी पढ़ के आना।

यहां की बात और चुहलें जो कुछ हैं सो यहीं रहने दो अब आगे यह सुनो जोगी महेन्दरगिर और उसके नब्बे लाख अतीतों सारे वन के वन छान मारे कहीं कुँवर उदयभान और उसके मा बाप का ठिकाना न लगा तब उन्ने राजा इन्दर को चिट्ठी लिखभेजी उस चिट्ठी में यह लिखा हुआ था तीनों जनों को मैंने हिरन और हिरनी