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कुँवर उदयभान चरित।


भगत से बैठाते हैं और वही पानी का घड़ा अपने लोगों को देकर वहां पहुंचा देते हैं जहां सिर मुंडाते ही ओले पड़े थे राजा इन्दर के लोग जो पानी के छीटे वही ईश्वरोवाच पढ़के देते हैं जो जो मरमिटे थे सब खड़े होते हैं और जो जो अधमुवे होके भाग बचे थे सब सिमट आते हैं राजा इन्दर और महेन्दरगिर कुँवर उदयभान और राजा सूरजभान और रानी लछमीबास को लेकर एक उड़न खटोले पर बैठ कर बड़ी धूमधाम से उनको अपने राजपर बैठा ने ब्याह के ठाठ करते हैं पनसेरियों हीरे मोती उन सब पर निछावर होते हैं राजा सूरजभान और उदयभान और उनकी माता लछमीबास चितचाही आस पाकर फूले अपने आप में नहीं समाते और सारे अपने राजको यही कहते जाते हैं जौंरेभैौंरे के मुँह खोलदो और जिस जिस को जो जो उकत सूझे बोलदो आज के दिन से और कौनसा दिन होगा हमारी आंखों की पुतलियों का जिससे चैन है इस लाड़ले इकलौते का ब्याह और हम तीनों का हिरनों के रूपसे निकल कर फिर राज पर बैठना पहले तो यह चाहिये जिन जिन की बेटियां बिन ब्याहियान कुँवारियान बालियान हों उन सब को इतना कर दो जो अपने जिस जिस चावचोज से चाहें अपनी अपनी गुड़ियां सँवार के उठादें और जब तलक जीते रहें हमारे यहां से सबके सब खाया पिया पकाया रांधा करें और सब राजभर की बेटियां सदा सुहागनें बनी रहें और सूहे राते छुट कभी कोई कुछ न पहना करें और सोने रूपे के किवांड़ गङ्गाजमनी सब घरों में लगजावें सब कोठों के माथों पर केसर और चन्दन के टीके लगे हों और जितने पहाड़ हमारे देस में हों उतने उतने ही रूपे सोने के पहाड़ आमने सामने खड़े हो जावें और सब डाकों के चोटियां मोतियों की मांग से बिन मांगे भर जावें और