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कुँवर उदयभान चरित।


फूलों के गहने और बन्दनवार से सब झाड़ पहाड़ लदे फँदे रहें और इस राजसे लगा उस राज तक अधरमें छतसी बांधदो चप्पा चप्पा कहीं न रहे फूल इतने बहुत सारे खंडजाय जोनदीया जैसी सचमुज फूलके बहतीयां हैं यह समझा जाय जहां भीड़ भड़क्का धूम घड़क्का न होना चाहिये और यह डौल करदो जिधर से दूल्हे को ब्याहने चढ़े सब लालड़ी और हीरे और पुखराज की इधर उधर कँवलकी टट्टियां बँधजायें और क्यारियां सी हो जायें जिनके बीचों बीचसे हो निकलें और कोई डांग और पहाड़तली का उतार चढाव ऐसा दिखाई न दे जिस की गोद पखरोटों और फूल फलों से भरी भतूली न हो।

राजा इन्द्र का ठाठ करना उदयभान के ब्याहने के लिये।

राजा इन्दर ने कह दिया वह रण्डियां बुलबुलियां जो अपने मद में उड़ चलियां हैं उनखे कहदो सोलह सिंगार बालबाल गजमोती पिरोवो अपने अपने अचरज और अचंभे के उड़न घटोलों को इसस राजसे ले उस राज तलक अथरमें छतसी बांधदो पर कुछ ऐसे रूप से उड़ चलो जो उड़नखटोलों की क्यारियां और कुलवारियां सी सैकड़ोंकोस तक होजायें और ऊपरही उपर मिरदंग बीज जलतरंग मुँहचंग घूँघरू तबले करताल और सैकड़ा इल ढब के अनोख बाजे बजते आयें और उन क्यारियों के बीचमें हीरे पुखराज अनबेधे मोतियों के झाड़ और लालटैंनों की भीड़भाड़ झमझमाहट दिखाई दे और और उन्हीं लालटैनों में से हथफूल फुलझड़ियां जाही जूहियां कदम गेंदा