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कुँवर उदयभान चरित।


पड़ना और अपनी परछाईं देखकर अकड़ना जहां तहां छांह उसका डौल ठीकठाक उनके पांवतले धूप थी।

दुल्ह उदयभान का सिंहासन पर बैठना।

और इधर उधर राजा इन्दर और जोगी महेन्दरगिर जमगये दुल्ह उदयभान सिंहासनपर बैठा दुल्ह का बाप अपने बेटे के पीछे माला लिये कुछ कुछ गुनगुनाने लगा और नाच लगा होने और अधरमें जो उड़नखटोले इन्दरके अखाड़े के थे सबके सब उस रूपसे छत बांधे हुए थिरका किये महारानियां दोनों समधनें आपुसमें मिलियां जुलियां और देखने दाखने को कोठोंपर चन्दन के किवाड़ों के अड़तलोंमें आबैठियां सांग सँगीत भण्डताल रहस होने लगा जितने राग और रागिनियां थीं यमनकल्यान (शुद्धकल्यान) झिझौटी कान्हड़ा खम्माच सोहनी परज बिहाग सोरठ कालंगड़ा भैरवी खट ललित भैरों रूप पकड़े हुए सचमुच के जैसे गानेवाले होते हैं उसी रूपसे अपने अपने समय पर गाने लगे और गाने लगियां उस नाच का जो भाव ताव रचावट के साथ हुआ किसका मुँह जो कहसके जितने वहांके सुख चैन के घर थे माधोबिलास रसधाम कृष्णनिवास मच्छीभवन चन्द्रभवन सब के सब लप्पे से लपेटे और सच्चे मोतियों की झालरें अपनी अपनी गांठमें समेटे हुए एक फबन के साथ मतवालों के रूप से झूमझाम बैठनेवालों के मुँह चूम रहे थे। बीचोंबीच उन सब घरों के एक आरसीधाम बनाया था जिसकी छत और किवाड़ और आंगन में आरसी छुट लकड़ी ईंट पत्थर की पुट एक उँगली की पोरी भर न थी चांदनी का जोड़ा पहने हुये चौदहवीं रात जब घड़ी छ एक रात रहगयी तब रानी