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पृष्ठ:कुछ विचार - भाग १.djvu/८०

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:: कुछ विचार ::
 

फ़ज़ीलत इसमें है कि वह इन्सान को इन्सान का कितना हमदर्द बनाता है, उसमें मानवता (इन्सानियत) का कितना ऊँचा आदर्श है, और उस आदर्श पर वहाँ कितना अमल होता है। अगर हमारा धर्म हमें यह सिखाता है कि इन्सानियत और हमदर्दी और भाईचारा सब कुछ अपने ही धर्मवालों के लिए है, और उस दायरे से बाहर जितने लोग हैं सभी ग़ैर हैं, और उन्हें ज़िन्दा रहने का कोई हक़ नहीं, तो मैं उस धर्म से अलग होकर विधर्मी होना ज़्यादा पसन्द करूँगा। धर्म नाम है उस रोशनी का जो क़तरे को समुद्र में मिल जाने का रास्ता दिखाती है, जो हमारी ज़ात को इमाओस्त में, हमारी आत्मा को व्यापक सर्वात्मा में, मिले होने की अनुभूति या यक़ीन कराती है। और चूँकि हमारी तबीयतें एक-सी नहीं हैं, हमारे संस्कार एक-से नहीं हैं, हम उसी मंज़िल तक पहुँचने के लिए अलग-अलग रास्ते अख़्तियार करते हैं। इसीलिए भिन्न-भिन्न धर्मों का ज़हूर हुआ है। यह साहित्य-सेवियों का काम है कि वह सच्ची धार्मिक जाग्रति पैदा करें। धर्म के आचार्यों और राजनीति के पण्डितों ने हमें ग़लत रास्ते पर चलाया है। मगर मैं दूसरे विषय पर आ गया। हिन्दुस्तानी को व्यावहारिक रूप देने के लिए दूसरी तदबीर यह है कि मैट्रिकुलेशन तक उर्दू और हिन्दी हरेक छात्र के लिए लाज़मी कर दी जाय। इस तरह हिन्दुओं को उर्दू से और मुसलमानो को हिन्दी में काफ़ी महारत हो जायगी, और अज्ञानता के कारण जो बदगुमानी और संदेह है वह दूर हो जायगा। चूँकि इस वक्त भी तालीम का सीग़ा हमारे मिनिस्ट्रों के हाथ में है और करिकुलम में इस तब्दीली से कोई ज़ायद ख़र्च न होगा, इसलिए अगर दोनों भाई मिलकर यह मुतालबा पेश करें तो गवर्नमेंट को उसके स्वीकार करने में कोई इन्कार न हो सकेगा। मैं यक़ीन दिलाना चाहता हूँ कि इस तजवीज़ में हिन्दी या उर्दू किसी से भी पक्षपात नहीं किया गया है। साहित्यकार के नाते हमारा यह धर्म है कि हम मुल्क में ऐसी फिज़ा, ऐसा वातावरण लाने की चेष्टा करें जिससे हम ज़िन्दगी वे हरेक पहलू में दिन-दिन आगे बढ़ें। साहित्यकार पैदाइश से सौन्दर्य का उपासक होता है। वह जीवन के हरेक