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पृष्ठ:कुछ विचार - भाग १.djvu/८२

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:: कुछ विचार ::
 

में डुबा दे, जो हमें वैराग्य, पस्तहिम्मती निराशावाद की ओर ले जाय, जिसके नज़दीक संसार दुःख का घर है और उससे निकल भागने में हमारा कल्याण है, जो केवल लिप्सा और भावुकता में डूबी हुई कथाएँ लिखकर, कामुकता को भड़काये, निर्जीव है। सजीव साहित्य वह है, जो प्रेम से लबरेज़ हो, उस प्रेम में नहीं, जो कामुकता का दूसरा नाम है, बल्कि उस प्रेम का जिसमें शक्ति है, जीवन है, आत्म-सम्मान है। अब इस तरह की नीति से हमारा काम न चलेगा।

रहिमन चुप ह्वै बैठिये, देखि दिनन को फेर

अब तो हमें डा॰ इक़बाल का शंखनाद चाहिये —

ब शाख़े ज़िन्दगिये मा नमीज़े तिश्ना बसस्त
तलाशे चश्मए हैबाँ दलीले बे तलबीस्त। १
ता कुजा दर तहे बाले दिगराँ मी बाशी,
दर हवाये चमन आज़ाद परीदन् आमोज़। २
दर जहाँ बालो ब परे ख़ेश कुशूदन आमोज़,
कि परीदन् नतवाँ बा परो बालेदिगराँ। ३

(१) मेरे जीवन की डाली के लिए तृषा की तरी ही काफ़ी है। अमृतकुंड की खोज में भटकना आकांक्षा के अभाव का प्रमाण है।

(२) दूसरों के डैनों का आश्रय तुम कब तक लोगे? चमन की हवा में आज़ाद होकर उड़ना सीखो।

(३) दुनिया में अपने डैने-पंखे को फैलाना सीखो। क्योंकि दूसरों के डैने-पंखे के सहारे उड़ना सम्भव नहीं है।

जब हिन्दुस्तानी क़ौमी ज़बान है, क्योंकि किसी न किसी रूप में यह पन्द्रह-सोलह करोड़ आदमियों की भाषा है, तो यह भी ज़रूरी है कि हिन्दुस्तानी ज़बान में ही हमें भारतीय साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ पढ़ने को मिलें। आप जानते हैं हिन्दुस्तान में बारह उन्नत भाषाएँ हैं और उनके साहित्य हैं। उन साहित्यों में जो कुछ संग्रह करने लायक है वह हमें हिन्दुस्तानी ज़बान में ही मिलना चाहिये। किसी भाषा में भी जो-जो अमर साहित्य है वह सम्पूर्ण राष्ट्र की सम्पत्ति है। मगर