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परिच्छेद ८२
विघातक मैत्री

१—उन व्यक्तियों की मैत्री विघातक ही होती है जो दिखाने को तो यह दिखाते है कि वे न जाने कितना प्रेम करते है, लेकिन उनके हृदय में प्रेम नहीं होता

२—उन अभागे नराधमों से सजग रहो कि जो अपने लाभ के लिए तुम्हारे पैरों पर पड़ने के लिए तैयार है, पर जब तुमसे उनका कुछ स्वार्थ न निकलेगा तो वे तुम्हे छोड़ देंगे। भला ऐसो की मैत्री रहे या न रहे इससे क्या आना जाता है?

३—देखो, जो लोग यह सोचते है कि हमे उस मित्र से कितना मिलेगा, वे उस श्रेणी के लोग है कि जिनमे चोरों और बाजारू औरतों की गिनती है।

४—कुछ आदमी उस अक्कड़ घोड़े की तरह होते है कि जो युद्धक्षेत्र में अपने सवार को गिराकर भाग जाता है। ऐसे लोगों से मैत्री रखने की अपेक्षा तो अकेले रहना ही हजारगुना अच्छा है।

५—जो निकृष्ट व्यक्ति अपने विश्वासपात्र मित्रको उसकी आवश्यकता के समय छोड़ देता है, ऐसे व्यक्ति से मित्रता करने की अपेक्षा न करना कही अच्छा है।

६—बुद्धिमानों से शत्रुता, मूर्ख की मित्रता की अपेक्षा लाखगुनी अच्छी है।

७—चाटुकार और स्वार्थी लोगों की मित्रता से शत्रुओं की घृणा सौगुनी अच्छी है।

८—जिस समय तुम कोई ऐसा काम करने मे लगे हो जिसे तुम पूरा कर सकते हो उस समय यदि कोई तुम्हारे मार्ग में रोड़े अटकाता है तो उससे तुम एक शब्द भी न कहो, बल्कि धीरे धीरे उससे सम्बन्ध छोड़ दो

९—जो व्यक्ति कहते कुछ है और करते कुछ है उनकी मित्रता की कल्पना स्वान में भी करना बुरा है।

१०—सावधान! उन लोगों से जरा भी मित्रना न करना कि जो पास में बैठकर तो मीठी मीठी बाते करते है पर बाहिर जन-समाज मेंं निन्दा करते है।