कुसुमकुमारी। (अट्ठाईसषा खींचकर मैंने जांच की तो तुममे जान पाई गई ! निदान, फिर तो मैंने एक बंटी लाकर और उसे पीसकर उसका रस तुम्हारे सारे बदन में लगाया, और उसी रस को किसी तरह तुम्हारे पेट में भो उतार दिया। फिर मैं तुम्हें इस मठ में ले आया और उसी प्रकार उस रस को बराबर लगाता और पिलाता रहा! याही जब तीन चार-बार रस के लगाने, और पिलाने से तुम्हारा शरीर गर्म होगया और नाड़ी भी चलने लगी, तब श्रीरामजी का नाम लेकर मैंने तुम्हारे पेट में से छुरी निकालली! और उसको निकालते ही उसी बंटी का रस घाव में खूब भरकर ऊपर से उसीकी लुगदी रख कर पट्टी बाधदी। धन्य हैं. रघुनाथजी कि आज छठे दिन तुमने आंखें खोली और अब तुम काल के गाल से बच गए, पर इस चूटी के रस के कारण तुम्हारा सारा बदन बिल्कुल स्याह और कुरूप होगया है और असली आवाज़ भी शायद ज़हर ही बदल गई होगी! अब यदि तुम्हारी मां भी तुम्हें देखेगी या तुम्हारी बोली सुनंगी तो तुम्हें न पहिचान सकेगी! "निदान, फिर नो मैंने बायाजी के पूछने पर असल भेद को छिपाकर झूट--मूठ छुरी खाने काहाल पढ़कर उन्हें सुना दिया और इस मान घर में बहुत ही खुश हुआ कि, 'अब मुझे देखकर ससार में कोई भी न पहिचानेगा! पांच-चार दिन और बाबाजी की मठिया मे रहकर फिर मैं आरे में आया और यहा आकर एक अजो समाशा मैने देखा ! मैंने क्या देखा कि मेरी तेरही की तयारी बड़ेधूम-धाम से हारही है और चुन्नी ऐसी उदाल, सुस्त और गमगीन मालूम पड़ती है कि मानी उसका खसम ही मर गया हो !!! "निदान, नेरही के दिन हजार-पत्रह सौ ब्राह्मणों ने मेरे नाम पर खूब सराह-सराहकर भोजन किए और बुन्नी ने बड़े हौंसले के साथ अपने हाथ से मेरा सारा प्रेत-कर्म किया, मैंने अपनी शैय्या, जो मेरे पुरोहितजी कोदान की गई थी,अपनी आखो से देखी थी। कहने का मन. लश यह कि मेरे पारलौफिक कर्म में चुन्नी ने दस-पन्द्रह हजार रुपये लगाए थे और पुरोहितजो को मकान, जगह, जमीन, आदिदेकर एक प्रकार से अयात्री कर दिया था। तो ऐसाघह क्यों न करती क्योंकि मेरीकामों की दौलत और मेरी हत्या के पचा जान कलिये यदि
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