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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१०२

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परिन्छन्द स्वर्गीयकुसुम पर जब कि पहर भर से ज़ियादह देर हुई, तब तो मेरा माथा ठनका कि ऐं ! इस हरामजादी ने मेरे साथ दगा तो नहीं की ! आखिर वही बान नज़र आई! “कई घटे के बाद सीढ़ी पर कुछ खटका हुआ, रौशनी भी नजर आई और साथ ही पांच-चार आदमियों के साथ चुन्नी सीढ़ी से उतरती हुई दिखलाई दी! उसे देखते ही मैंने बिगडकर कहा.-'क्यों, री! हरामजादी! इन गेर शखलों कोतू क्या इस सुर में ले आई और किलिये तूने इस सुरङ्ग का भेद अनजान लोगों के आगे जाहिर किया?" बन, पहिले पहिल यही ऐसा मौका पड़ा था कि मैने चुन्नी को आंखें दिखलाई और गालियां भी दी । मगर, हाय ! चुन्नी ने मेरी बातों पर जरा मुस्कुराकर उन पाँच्चो की और कुछ इशारा किया जिसे समझ चट पट उन हरामजादों ने लपककर मुझे वेकाबू करके बाध डाला और तब चुन्नी ने बरजोरी मेरे पेट में छुरा भोंक दिया!" इतना कहते कहते भैरोसिंह कांप उठा और अपना कलेजा थाम कर वहीं पर लेट गया! कुसुम ने घबराकर और गुलाबपाश उठा- कर उस पर छिड़कना प्रारम्भ किया, पर उसने इशारे से मना किया और फिर थोड़ी देर में अपना जी ठिकाने करके उठकर यो कहना प्रारम्भ किया,--- "हां. तो-उम हरामजादी ने मेरे पेट में छुरा भोंक दिया! फिर क्या हुआ, यह तो मुझे नहीं मालूम.पर जब मैंने आँखें खोली तो 'एकवना' (१) के एक बाबाजी के मठ में एक खाटपर अपने तई पड़े पाया! "पूछने पर बावाजो ने मुझसे या कहा था, 'आज उस बान को छठां दिन है कि मैं बड़े तड़के गंगा स्नान करने गया, तो तुम्हें नीर पर लगे हुए पाया! पहिले तो मैंने तुम्हें मुर्दा समझा था, पर जब पेट में छुरी लगी हुई देखी, तो मेरे जी में कुछ और ही नयाल पैदा हुआ! हाखिर, किनारे पर सुख्खे में तुम्हारी लाश को Mu v iwest (१) यह आरे से तीन-चार मील उत्तर, गंगा किनारे, एक छोटासा गधि है