कुसुमकुमारा (अट्ठाईसपा चुन्नीबाई से कहा था, पर उसने यह कहकर लाश फंकने की जल्दी मचाई कि, 'मैं रडोहूं, इसलिये अगर बाबू कुंवरसिंह या शहर के और रईसी को अभी खबर दी जायगी तो वे लोग ज़बर्दस्ती लाश को छीन लेंगे और मुझसे न फुकवाकर ब्राह्मण के द्वारा इसे फंकवावेगे; पर मैं अपने प्राणनाथ की कपाल-क्रिया अपने हाथ से करूंगी। हाय ! मैं उनके सर्वस्व की मालिकनी हुई, तो क्या उनके क्रिया-कर्म के करने से भी कमी हट सकती हूं!' इतनी बात चुन्नी की कही हुई कहकर हीरालाल ने फिर यों कहा.---"अहा ! ऐसी रंडी तो कहीं नहीं देखी! जिस दिन से बाबू- साहब मरे है. उसने सब कुछ त्यागकर अपने को जोगिन बना रक्खा है और इस कदर वह बाबूमाहब के लिये रातो-पोटती रहती है कि अगर यही हाल उसका महीने-दो महीने रहा तो वह मर जायगी उम्मकी ऐसी हालत देखकर बाबूकंवरसिंह ने भी उसे बहुत समझाया और पीठ-पीछे उसकी बड़ाई कर कहा कि, 'चुन्नी ऐसी, नेक रंडो इस ज़माने में दूसरी न होगी;' इत्यादि । भैरोसिंह ने कुसुम से कहा,-"सुना, तुमने ? उस हरामजादी ने कैसा जाल फैलाकर लोगों की समझ पर पर्दा और आंखों में धूल डाली थी! "हा! इन सब विचित्र तमाशों ने मेरे दिल के साथ वह काम किया, जो नमक जखम के साथ करता है ! फिर तो मेरी यह इच्छा हुई कि अब कुछ दिन यहां रहकर वुन्नी का तमाशा देखना चाहिए कि वह कैसी कैसी चालाकियां खेलकर किस किस नरह संसार में अपना जाल फैलाती है ! "यह वात मुझे कई कारणों से लाचार होकर करनी पड़ी, जिन- का हाल में आगे चलकर कहूंगा। निदान, हीरालाल की मदद से मैंने बड़ी आसानी ले चुन्नी की ज्योढ़ोदारी हासिल कर ली ओर लोगों से अपनी जाति तो सही. अर्थात 'क्षत्री' बतलाई. पर नाम बदलकर भैरोदिह बतलाया और या कहा कि, 'मेरा घर बसर में है। हा! अपनी ही नासमझी के कारण अपना सर्वम्व खोकर मुझे माज तक उसी हत्यारी की प्यादेगीरी करके अपना दिन काटना पड़ा, पर फिर भी मेरे पापी प्राण न निकले इसलिये यह कौन कह स हि यहां परमरक नहीं है और प्राये, किये हुए मौका
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