पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११

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प्रसिद्ध है; परन्तु जिन्होंने इसको अपनी आंखों से नहीं देखा है,वे इसकी वहार कैले जान सकते हैं!

आज कार्तिकी-पूर्णिमा है और पर्व या स्नान का प्रधान दिन है। इसलिए एक घड़ी रात के तड़केही से गंडकी के किनारे,विशेष कर सगमपर, स्नान करनेवालों की भीड़ का कोई वारापार नहीं है। नहाने-वाले भी ऐसे महापुरुष हैं कि वे डूबने से जरा नहीं डरते और एक दूसरे पर गिरे ही पड़ते हैं। पानी का तर्खा ऐसा है कि नदी में पैर नहीं ठहरते, तिसपर भी नहानेवाले नहीं डरते और एक पर दूसरे महराए ही पड़ते हैं। आजकल की भांति उस समय पुलिस का इंतज़ाम पूरी रीति से न था, हां, कहीं-कहीं किनारे या नावों पर पुलिस के बर्कन्दाज़ दिखलाई पड़तेथे, पर आजकल के स प्रवध की उत्तमता उस समय न थी। इतनी रेलापेली पर भी एकाएक कोई डूबता या बहतान था, इसका कारण यही था कि तीर से जरा हटकर बराबर, लगातार, नावे वधी हुई थीं। इतने पर भीर्याद कोई बहता या डूबने लगता तो नाव पर के मल्लाह झट उसे बचालेते और उस आदमी से इनाम के तौर पर कुछ पैसे वसूल करलेते थे।

सूरजकाचका दो हाथ ऊंचा उठ आया था और नहाने-वालों की भीड़ खूब ठसाठस्स होरही थी। ऐसे समय में एक डोंगी, जो कि पटने से चली आरही थी और अब संगम में पहुंचकर तीर से लगभग तीस-पैतीस हाथ ही दूर रही होगी, कि पास ही से जाती हुई एक बड़ी किश्ती से एकाएक टकराकर चट उलट गई। उस डोगी पर तीन औरतें और मल्लाहों को छोड़कर चार मर्द भी थे। जब तक लोगों की निगाह उस डोंगी या उसपर के आदमियों पर पड़े,तबतक तो यह उलट ही गई ! यहांतक कि जो लोग उस पर सवार थे. उन बेचारों को चिल्लाने तक का मौका भी न मिला। डोंगी के उलटते ही उस किश्तीपर से, जिसकी टक्कर से वह उलटी थी, तुरंत एक नौजवान धड़ाम से नदी में कूदपड़ा और गोता लगाकर जोर जोर से हाथ-पैर फेंकता हुआ उस ओर तीर की तरह बढ़ा, जिधर या जहांपर वह डोंगी उलटी थी। डोंगी का उलटना और उस नौजवान का कूदना,-ये दोनों घटनाएं पलक गिरने के समान इतनी जल्दी हुई कि जब वह नौजवान पानी में कूद गया तब लोगों का ध्यान जोगी के टकराने या उलटने की ओर गया।