पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११४

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__ परिच्छेद) कुसुमकुमारी परमेश्वर का बड़ाभारी अनुग्रह ही समझना चाहिए! यह तो मैने कमी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस समय ताली के झमेले में झगरू आपसे आप आ पड़ेगा और उस ( तालो) के चुराने का कलङ्क उसीको लगेगा परन्तु उम ममय उसका आना और चुनी के साथ उसका झगड़ा होना-इसे ग्मात्मा की पूरी कृपा ही समझना चाहिए।" कुसुम,-"बेशक, यात प्रेमी ही है।" भैरोसिंह कहने लगे,--"मैने तो यह समझा था कि, 'अब चुभी और झगरू की हमेशो के लिये खटक गई;' पर नहीं,-कमोनों में जैसे अहुन दिनो तक बनाब नहीं बना रहता, वैसेहा उनमें मन- माटाव भी बहुत दिनों तक कायम नहीं रहसकता। चुनी जैसो कमीनी औरत थी, झगरू भी वैसाही कमीना आदमी था. इस लिये उन दोनों का कान उन दोनो-बगेर न चला । पाच-छः महीने के शाद झगरु में फिर आना-जाना शुरू किया और चुन्नी के साथ उसका फिर मेल-जोल होगया; पर यह बात नारायण ही जाने कि. चुन्नी के जी से ताली का मलाल कभी गया था, या नहो; या इस बारे में झगरू को तरफ़ से उसका दिल साफ़ भी हुआ था, या नहीं!" कुसुम,-"खैर, अब आगे का हाल कहिए कि फिर झगरू के चले जानेपर क्या हुआ?" भैरोसिंह ने कहा,-"सुनो, कहनाई, झगरू के जाने के बाद थोड़ी देर तक तो मुझे सन्नाटा मालूम हुआ, इसके बाद ऐसा जान पडा, मानों चुन्नी-खुद मजदूरिनों को जगा रही है। फिर थोड़ी देर के बाद एक मजदुग्नी ने बाकी के नौकर-चाकरों को-और साथ ही मुझे भो----जगाया। इसके बाद मेरी नलयो हुई और चुन्नी ने मुझसे पूछा.-"तुम रात को कब सोए और कहां सोए ? " मैने झूठ-मूठ यह जवाब दिया,-"बारह बजे रात तक मैं जागना और रामायण बांचता रहा। इसके बाद मैं फाटक के बगल वाली अपनी कोठरी में मोया। फिर क्या हुआ. यह मुझे नहीं मालूम। हा इस वक्त रोमकली मजुनी न मुझे जगाया और मापके पास