सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वगायकुसुम । । भराईसषा बाला,-यह तुम सरासर जुल्म करती हो, जो मुझे झूठा इल्जाम लगाती हो! अजी, बो ! मैं तो अभी, कुछ देर पहिले, बाग में आया हूं और यहां आकर और तुम सभों को बेहोश देखकर अभी सिर्फ तुम्हीं को होश में लाया हूं। ज़रूर, यह तुम्हारे किसी दुश्मन को ऐय्यारी है !" चुन्नी-( खिजलाहट से ) "सिवा तुम्हारे, इस ताली का भेद मालूम हो किसे है, जो इसके लेने के लिये ऐसी ऐय्यारी करता ! बस, यह तुम्हारी ही कारस्तानी है, और जब मैने तुम्हें रजामन्दी से ताली नदी तो तुमने इस कमीने पन के ढग से उसे लिया!" झगरू,-" अबतो तुम बहुत हो अनाप सनाप बकने लगीं। चुन्नी,-'अभी तो मैं सिर्फ मुहं से ही कह रही हूं, लेकिन इतने पर भो जो तुम भलमन्सी से तालीन दोगेतो मैं तुम्हारे साथ बहुत ही बुरी तरह से पेश आऊगी।" झगक,-"तो तू मेरा क्या करेंगी, हरामजादी ?" "यहसुन और तेजी के साथ उठकर चुन्नी ने ऐसे ज़ोर से लात मारी कि झगरू पलंग के नीचे औंधे मुहं गिर पड़ा और उसके दो दांतों के टूट जाने से मुंह से खून बहने लगा। फिर सम्हल और उठकर उसने चाहा कि चुन्नी को उठाकर देमारे, पर चुन्नी ने झपट कर सल्वार खैच ली और झगरू पर वार करना चाहा ! यह देख वह कमोना वहां से ऐसी तेजी के साथ भाग के फाटक को खोलना हुआ भाया कि उसने पीछे फिर कर भी न देखा! अगर उस समय यह पीछे फिर कर देखता तो मेरी और उसकी जरूर ही चार आंखें हो जाती, क्योंकि उसके भागते ही मैं भी चुन्नी के कमरे की बगल माला कोठरी में से, जहां पर छिपकर कि मैंने उन दोनों की बातें सुनी धी-निकलकर तेजी के साथ अपनी कोठरी की तरफ मा रहा था। खैर, मगरू ने मुझे न देखा, यह अच्छाही हुआ और मैंने अपनो कोठरी में आकर फिर बेहोशी का स्वांग लिया ! बह सुन और हंसकर कुसुमकुमारी ने कहा, "अहा ! कैसी अहुत महिमा है, उस सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर की कि उस पर- मात्मा ने उस ममय भगरूको बाग में भेजकर ताली की सारी सला उसी पर डाली. महरि ---शक, उस समय बाग में भगत का भाना