परिच्छेद) कुसुमकुमारा। करता, यहां तक कि बरसों अक्सर जाने का नाम भी न लेता!" कुसुम,-'"और कभी कभी तो मैं भी आपको कहीं नहीं जाने देती थी." भैरोसिंह.--"हां यह ठीक है धन्य है, जगदीश्वर कि चुन्नी डूब कर मर गई और झगरू कालेशानी गया ! पापियो ने अपने अपने पापों का उचित दण्ड हाथों हाथ पाया और मैं--न जाने किस लिये अभी तक जीता रचरहा ! न मालूम, अभी मेरे भाग्य में मा क्या भोग भोगना यदा है ! " कुसुम,---"आपका असली नाम क्या है ? " भैगेसिंह,-"देख लो. मेरी तस्वीर के नीचे लिखा हुआ है। यह सुन और तस्वीर उठाकर कुसुम ने पढ़ा उसमें लिखा था,--- "कंवर मोतीसिंह ।" फिर कुसुम ने पूछा,-"और आपके पूज्य पिताजी का नाम भैरामिहने कहा.---"कंवर हीरासिंह।" कुसुम.---' : यही नाम ता मापने गवाही देनी बार भी बतलाया था?" भैरोसिंह,-"हां! यही नाम बतलाया था। भला, मैंने अपना नाम बदल डाला तो क्या बाप का भी नाम बदल डालना!फिर उसके दलने की आवश्यकता ही क्या थी. क्योंकि होरासिंह के नाम लेने से किसीका खयाल दूसरी ओर नहीं गया था। इसके बाद भैरोसिह ने सुरग की नाली कुसुम को देकर कहा,- "इस सुरङ्ग का भेद तो मैंने तुम-दर्दानों को बतला ही दिया है, इसलिये अब इस सुरङ्ग की ताली तुम अपने रास बहुत हिफ़ाज़त के साथ रखना और सुरङ्ग का हाल किसी गैर शरूम घर जाहिर न करना। रात अधिक होगई थी, इसलिये भैरोसिंह उठकर चले गए और कुसुम भी बसन्त का हाथ पकड़े हुए पलंग पर जा लेटी। पर हमे मालूम है कि उस रात को कुसुम और बसन्त की आंखों में नीद ने भूल कर भी पर नहीं रहा था और दोको ने भैरोसिंह की अवस्था पर अफसोस करते करने ही सबेरा कर दिया था!
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