परिच्छ) कुसुमकुमार।। १०१ कुसुम ( चिढ़कर ) "तुम्हारा मिर करना पड़ता है ! क्या बिना शाप के बोझ उठाए, फ़कन गाना बजाना नहीं होसकता?" बसन्त,-हँसकर ) "हो क्यों नहीं सकता, लेकिन फ़क़त गाना सुनने लोग क्यों आवेंगे? और अगर कोई आवेगा, तो तुम्हें कुछ और भी करना पड़ेगा." कुसुम,--"(चिढ़ कर ) "खर, मुझे जो कुछ करना पड़ेगा. उसे मैं खुशी से कर लूगी और तुम आंख मंद कर अपनी जोरू की कमाई खाया करना ! यो ? अब नो ठीक हुआ न!" बसन्त,--(हसकर )"इसमें ठीक या बेठीक की कोई जरूरत नही है, क्योंकि मैं तो अब्बल दर्जे का बेहया है, इसलिये मैं सब कुछ खा सकता हूं।" कुसुम,---"आज तुम्हारे होश ठिकाने हैं, या नहीं ! " बसन्त,-" भला, तुम्हारे एसी नशीली चीज़ पाकर मेरा होश कभी-ठिकाने रह सकता है ." कुसुम यह सुनकर हंस पड़ी और बोली,-"बस, बस: मैने समझ लिया कि आज तुम इतना मज़ाक क्यो कर रहे हो!" बसन्त.---"क्या समझ लिया !" कुसुम,-"यही कि आज मैगसिह के दर्द नाक किस्से ने मेरे दिल को बहुत ही परीशान कर रखा है।" बसन्त.- हंसकर ) "नही. बी ! तुम मेरा दिली मतलब जरा म समझौं: अजी, अब तो मैं तुम्हारा भेडा चनंगा और नए नए----- यह सुन कुसुम बहुतही कल्लाई, पर बसन्न ने अपनी छोड़-छाड़ बन्द न की। यह देख फिर तो कुसम ने ऐसी त्यारी बदली कि बसन्त कुमार मुस्कुराकर चुप होगया। फिर आपन में यह सलाह ठहरी कि 'अ जो कुछ अपने सिरपड़ेगा, वह देखा जायगा मगर भैरोसिंह की सारी मिलकियत उन्हें लौदा ही देनी चाहिए: किन्तु यदि अथवे इसे यो न ले तो उन्हें यह जगदपती दे देनी चाहिए।" इत्यादि।
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