सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वगीयकुसुम । (तेतोसपा तेतीसवां परिच्छेद प्रणयालाप। " नवाननं सुन्दरि फुल्लपङ्कज, स्फुट जापापुष्पमसौ तवाधरः । विनिद्रपद्म तव लोचनद्वयं, तवाङ्गमन्यत्किल पुष्पसञ्चयः ॥" (प्रणय-पारिजाते.) areatitDसन्तक मार ने क सुम को बैंच और अपने कलेजे से लेबलगाकर कहा,-"क्यों प्यारी! जरा मेरीएक थात सुनोगी? कसुम ने कहा,--" क्या कहते हो ?" . बसन्त ने हँसकर कहा, " हसि-हंसि बात करौ सुक मारी। नैन निरखि हरौ मन प्यारी॥ ऐसी हसी सिखाई कौने । रहौ हली-भरि नैन-अगौने ।” इतना सुनकर क सुम ने बसन्त को भरजोर गले से लगालिया और कहा.-'प्यारे. तुम मुझे दिल से प्यार करते हो, इसीलिये तुम्हें मैं इननी अच्छी लगती हूं !" बसन्त,-" इसी प्यार का तो यह बदला चुकाया जाता है कि मुझे दूसरी के हवाले करके मेरे जिगर का खन किया जाता है!!!" कुसुम ---" ऐसा समझना तुम्हारी सरासर भूल है, क्योकि मैं तो तुम्हारी वामाङ्गिनी हूं. परन्तु एक दक्षिणाङ्गिनी की भी आवश्यकता थी, उसके लिये मेरी सहोदराभगिनी चुनी गई है। अब इस विवाह के होने से तुम्हारे दक्षिण और वाम-दोनों अड़ों की शोभा हो जायगी और सच्चे तथा स्वर्गीय प्रेम के साम्राज्य में जो कछ कमी थी, वह भी पूरी होजायगी।" वसन्तक मार ने हसकर कहा,-'वाह,क्या कहना है ! बाते बनाने में तो तुम अपना जोहा नीरस्वती ३५ ___क सुम (मुम्फ राकर ) छ ऐसा चाटी या न कहो