पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१३६

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परिच्छेद ) कुसुमकुमारी १२७ क्योंकि मेरा जोड़ातो मेरे सामने मौजूद है !" बसन्त,-(मुस्कुराकर ) 'ठीक है; रंडियां अगना जोड़ा अपने साथ हो रखती हैं! " कुसुम,—(हंसकर) और मले भादमियों का जोड़ा खिदमतगारो के साथ रहता है ! ” बसन्त,--"जी हां, बजा इर्शाद ! ” कुसुम,-"चे खुश!" बसन्त,-"आज तो बड़े रङ्ग पर हो!" कुमम,-"हमेशा ही रहती हूँ !" बसन्न.-"लो इस हाजिर-जवाबी का भा कोई ठिकाना है ! " क सुम,--( हंसकर)"तुम्हें यह जानना चाहिए कि हम लोग हाजिर-जवाची की ही रोटा खाती हैं !" यमन्त,-'ग्वैर, मज़ाक तो बहुत हुआ, अथ कुछ गाओ।" कुसम,--"झ्या गाऊं?" असन्त,-- 'वो जो मैंने उस दिन चार छन्द बनाए थे न !” कुसुम,-'अच्छा, सुनो" अरुण कमल माला, चन्द्रिका-ज्योति-जाला, चलनि मनु पराला, साल साह निराला ॥ नयन अति त्रिशाला, मारती तान भाला, मदन मद रसाला, है खड़ी कुछ बाला ॥ १ ॥ सभा मधुर अाला. झुमत कान बाला, हँसत करि उजाला, ज्यों नटी नत्यशाला॥ बजत सुरम ताला, पहावती रागमाला. युवक जन कसाला ढालती प्रेम आला ॥२॥ बहत पवन पाला, शीतकाला कराला. पियत मधुर प्याला, ज्यों मिठाई निवाला ।। सुभग-तन दुमाला, है पिछे गोल गाला, विहरति मद ढाला, मानिनी चारू चाला ॥३॥ चपल तडिन बाला, हाय एसो निठाला. सुरति समर डाला यों दहे नीर-जाला यहत नदिन नाला ज्या इने आहनाला सहन सम् कसाला जाहि को दूर घाला ४॥