पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१६३

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स्वगायकुमुम [ उमचारीसचा भर से कूच किया। राजा कर्णसिंह के साथ कुसुम की जो कुछ बातें हुई थी, उन्नत का हाल बसन्तकमार कसुम से सुन चुका था: यही सबब था कि त्र्यम्बक का परिचय पाते ही वह चौकन्ना हो गया था और उसे चट- पर कुसुम के पास ले आया था। क सुमक मारी ने कहा,-"वह इतने दिनों के बाद आज किस लिये मेरे पास आया है ?" असन्त,-"यह बात तो तभी मालूम होगी, जब तुम उसके साथ बात-चीत करोगी। हां, इतना हाल उसकी जबानी मुझे मालूम हुआ है कि वह तुम्हारे पिता से बहुत ही फटकाग जाकर यहां तुमसे अपने अपराधों की क्षमा मांगने आया है।" क सुम,-"खेर, अच्छी शात है । मैं उससे ज़रूर मिलगी. क्योंकि एकबार उससे मिलने की मुझे गड़ी हो चाह थी, सो आ भगवान् ने पूरी की।" यो कहकर वह बसन्तक मार का हाथ पकड़े हुई कमरे में जाकर बैठ गई और अपने जमादार बेचूसिंह को बुलाकर उमने यों कहा कि, 'फाटक पर जो पण्डाजी तड़े हुए हैं, उन्हें मेरे पास भेज दो और इस बात का ध्यान रखो कि जब तक मैं फिमी नौकर या मजदुरजी को न बुलाऊं, तब तक इस कमरे के अन्दर कोई नभाने पावे; क्योंकि उन पण्डाजी के साथ मैं क छ पोशीदा बातें करूंगी।' यह सुन और---"जो हुक्म' कहकर बेन्चुसिंह चला गया और थोड़ी ही देर में उस कमरे के दरवाजे पर आकर एक बदशकल और मैलाक चैला कोढ़ी खड़ा हो गया ! उसके सारे बदन से कोढ़ फूट निकला था, हाथ-पैर की सारी उंगलियां गल गई थी और उसके बदन से निकलती हुई पद को झझक इस तेजी के साथ चारो तरफ उड़रही थी कि वह कमरा मारे दुर्गन्ध के भर उठा था, ऐसे मूर्तिमान् पाप के अवतार को देख कसुम और बसन्त के सारे शगर के गेंगटे खड़े हो गए और कछ देर तक वे (क सुम और बसन्त ) दोनों एक दूसरे की और हैरत से निहारते रह गए! इसके बाद क सुम ने अपने पानदान में से गुलाब की रूह वाली शीशी निकाली और उसका ढपना खोलकर उसे एक तरफ रस दिया । इसके बाद उस फाढी का तरफ मुम्नानिय हाफर कहा