परिच्छेद) कुसुमकुमागे। - तुम्हारी बहिन उसके मुंह से तुम्हारे बारे की कोई बात न सुन सके; क्योकि वह (तुम्हारी बहिन ) उस पण्डे को देखते ही उसके सामने चली आई थी और उस पण्डे के साथ उसने मामूली बातें करती शुरू करदी धीं; यह देख मैं बहुत ही शबराया और तुम्हारी बहिन को किसी काम में उलझाकर उस पण्डे को अपने साथ यहां ले आया। यह एक ऐसी ताज्जुब पैदा करने वाली बात थी कि जिले सुनकर कुसुमकुमारी बहुत ही कराई. क्योंकि उसे इस बात की सपने में भी उम्मेद न थी कि, 'इस जिन्दगी में कभी उस पण्डे (ज्यम्बक) के साथ मुलाकात नसीब होगी!' इसी अनहोनी बाद को आज सच हुई जानकर कुसुम ने एक ठंढी सांस भरी और उदासी से बसन्तकुमार की ओर देखकर पूछा,-"क्या, वाकई तुम उस पण्डे को साथ लाए हो?" अरूत्त,-"हां, इसे तुम दिल्लगी न समझो। सचमुच मैं उसे बाग़ के फाटक पर ठहराकर तुमसे उसके आने की इत्तिला करने आया है।" पाठकों को समझना चाहिए कि जबसे बसन्तकुमार का ब्याह हुआ था, तबसे कुसुम ने अपना मकान तो गुलाब के रहने के लिये आराम्ना कर दिया था और आप अपने बाग में रहने लगी थी। यही सबब था कि बसन्तकुमार गुलाब के साथ घर रहा करना था और रोज किसी न किसोबत एक बार आकर कुसुम से मिल जाया करता था। आज कुछ परमेश्वर की दया थी कि बसन्त कुमार त्र्यम्बक के आने के समय घर पर मौजूद था । वह कुसुम के यहां आने की तयारी करके घर से निकला ही चाहता था कि त्र्यम्बक यहां पहुंच गया था और अपने बाप के पण्डे को देखकर गुलाब ने उसके साथ मामूली ढग की बातें करनी शुरू करदी थी; यदि बसन्तकुमार की गैरमौजूदगी में ज्यम्बक को मुलाकात गुलाब से हो जाती तो मुमकिन था कि वह गुलाब के आगे कुसुम का कुछ न कुछ पोशीदा हाल कह वैठना; पर जब बसन्तकुमार को यह मालूम होगया कि. 'कसुम की सारी घरवादी की जड़ यहा ध्यम्बक है 'तब फिर उसने उस (त्र्यम्बक) को गुलाब के साथ बातें करन का नियादा मौका न दिया पार उसे मान साथ न कर
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