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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१६५

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स्वर्गायकुसुम (उनचासोसवा -- - - - - - - - - - - - हुए, मैं अपने यजमान और तुम्हारे पिता-राजा कर्णसिंह के यहां मया था, पर वहां जाने पर मैंने उनकी ज़बानी एक अजोब कहानी सनी और बड़ी भारी फटकार भी खाई ! मुझे इसबात का सपने मे भी खयाल न था कि, 'जिम स्त्री ने अपने को नानी बतलाकर तुम्हें मुझसे लिया था, वह दर असल रण्डी थी!' यदि ऐसा मैं जानता तो कभी, भूलकर भो, उसके हवाले तुम्हें न करता। उस स्त्री ने अपने को बिहार के एक००० परगने की रानी बतलाया था, पर जब मैं तुम्हे बिदा करने के कुछ दिनों बाद उस परगने में गया और वहां जाकर मैने उस रानी का पता लगाया,-जिसने कि अपना नाम मुझे चन्द्रमुखी बतलाया था, तो मुझे कुछ भी पता न लगा। तब मैंने यह समझा कि, 'तुम्हारी या मेरी किस्नत शायद फूटगई और तुम किसी खोटी औरत के पल्ले पड़गई ! ' इसके बाद भो, इधर-उधर, जहां जहा, कि मैं गया-आया, बराबर तुम्हारा पता लगाता रहा: पर सब बेकार हुआ ! हां, इतना पाप मेरा अवश्य है कि मैने देवोत्तर-सम्पत्ति पर हाथ डाला था और उसकी एवज़ में उस शैतान औरत से दोहजार रुपये भी लिए थे, जिसे अन्च मैने तुम्हारे पिता के सामने भी मजूर किया है और इस समय तुम्हारे आगे भी सकारता हू; इसमें चाहे जो कुछ तुम समझो। अब यहाँ पर मैं यह बात भी साबित कर दूंगा और इस पर खद तुम्हारे मुंह से "हां" कहला लंगा कि, 'तुम्हें उस औरत के हवाले करने में मेरी कोई बदनीयती नहीं थी और मैं यह नहीं जानता था कि. 'वह औरत रण्डी थी!' यदि तुम्हारी तरफ़ से मेरी नीयत खराब होती तो मैं तुम्हे बिदा करते समय तुमसे न तो तुम्हारा कोई हाल ही कहता और न तुम्हारे पते-ठिकाने-वाला तावीज ही तुम्हारे हाथ धरता । शायद तुम्हें यह बात याद होगी कि मैंने तुम्हें राजकन्या बतलाया था और इसीलिये एक रानी के हवाले किया था । मैंने उस समय एक चांदी का तावाज, जो कि अंगूठे के बराबर मोटा था और जिलकी शकल ढोलक की सी थी, तुम्हारे गले में डालदिया था। इसके अलावे एक चांदी की तरही भी तुम्हें दी थी, जो कि चार अगुल लम्बी और उतनी ही चीड़ी भी थी। उस समय मैंने तुमसे यह बात भी शायद जरूर कही थी कि 'जब तुम सयानी होना तब इस ढोलक का सफल वाले यन्त्र का तोडफर अपना सचा हाल