पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१६६

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परिच्छेद) जान लेना; क्योंकि इसके भीतर तुम्हारा पूरा पूरा हाल भोजश्व पर लिखकर मैने रख दिया है। अब तुम स्वद ही इन्साफ़ करो और यह बतलाओ कि मैंने जानबूझ कर तुम्हारे साथ क्या बुराई की? यदि मेरी नीयत बुरी होती और मैं मुम्हारे साथ बुराई करना चाहता होता तो तुम्हारा हाल पूरापूरा लिखकर उस तावीज़ में क्यों रख देता, और सयानी होने पर उसकी मदद से अपना कल हाल जान लेने के वास्ते तुम्हे सलाह क्यों देता ? मैं यह जानता था कि तुम एक राजा की लड़की हो, इसलिये मुझ सरीखे कङ्गाल के घर तुम्हारे दिन कैसे कटेंगे ! इसलिये जब एक रानी ने तुम्हें अपनी बेटी की तरह लाड़-प्यार के साथ रखना मञ्जर किया, तब मैंने खुशी से तुम्हे उसे सौंप दिया ! इसके बाद जब बहुत क छ खोज-ढूंढ़ करने पर भी तुम्हारा कुछ पता न लगा और तुम्हारे पिता ने तुम्हारे बारे में मुझसे पूछा, ती लाचार होकर डर के मार मैने उनसे यह कह दिया कि, 'आपकी लड़की चन्द्रप्रभा मर गई। यह बात मैने बेशक सरा. सर झूठ ही कही थी, क्योंकि सिवाय इसके, उसवक्त तुम्हारे बारे में मैं और क्या कह सकता था ? देखो, एकती मैने देवता की सम्पत्ति (तुम ) को दूसरे के हवाले किया था, और दूसरे उस सम्पत्ति __ पर (तुमपर )दो हजार रुपए धंस के लिए थे; इनके अलावे जबकि तुम्हारा मुझे कुछ पता ही नहीं लगा था, तब फिर मैं सिवाय झूट बोलने के. और कर ही क्या सकता था ? चन्द्रप्रमा! मैं पापी तो अवश्य हूं और मेरे पापों का दण्ड भी मुझे श्रीजगदीश ने दे दिया है. जिसे तुम इस समय अपनी आँखों से देव भी रही हो,--परन्तु फिर भी इतना मैं श्रीजगन्नाथजी की साक्षी देकर कह सकता हूं कि, 'तुम्हें उस स्त्री के हवाले करने के समय मेरे दिल मे कोई बुरा खयाल न था, और मैने जान बूझकर तुम्हें किसी रण्डी के हवाले नही किया था। ' मैं अभी तुम्हारे पिताजी से मिला था: उनसे तुम्हारी सारी कहानी मैने सुनी थी जिसे सुनकर मुझे बड़ा दुःख हुआ, परन्तु फिर भी इस बात की मुझे बड़ी खुशी हुई कि मैने जो तुम्हें वह तावीज दिया था, जिसमें कि तुम्हारा सारा हाल लिखा हुआ था,---उसने तुम्हारे साथ बहुत बड़ी भलाई की; क्यों कि यदि मैंने तुम्हें उस पर्चे को न दिया होता तो तुम न तो अपना मूगपूरा हाल ही जान सकती और न अपना घम ही किसी तरह